परवेज अख्तर/सिवान : केशर शिक्षण संस्थान सह लाली मंदिर परिसर में चल रहे सात दिवसीय श्रीराम चरित मानस सम्मेलन के तीसरे दिन शनिवार को वाराणसी से पधारी मानस कोकिला नीलम शास्त्री ने श्रद्धालुओं को श्रीराम कथा का अमृतपान कराया। उन्होंने भरत को रघुवंश का चंद्रमा बताते हुए कहा कि यदि वास्तविक अमृत का निरूपण किया जाए तो अमृत तत्व प्राकृतिक चंद्रमा में न मिलकर भरत रूपी चंद्रमा में मिलता है। राम राज्य के बाद राम अपनी माता कौशल्या के पास न जाकर सौतेली मां कैकेयी से मिलने पहुंचे, जो वर्तमान समाज के लिए एक परक उपदेश है। राज सिंहासन पर बैठते समय भरत के न दिखाई पड़ने पर जब राम ने पूछा तो गुरु वशिष्ट ने कहा कि वह तुम्हारे पीछे छत्र लिए खड़ा है। इस पर राम ने कहा कि भरत रूपी छत्र के नीचे ही राज्य करना संभव है। वहीं प्रतापगढ़ से पधारे दिनेश त्रिपाठी ने राम-रावण युद्ध का मनोहारी का वर्णन किया। उन्होंने कहा कि युद्धकाल में प्रकृति तक ने अपने नियम परिवर्तित कर दिए थे। ‘चहुंदिशि दाह होन अति लागा, भयहु परब दिन रवि उपरागा’ का अर्थ बताते हुए उन्होंने कहा कि सदैव अमावस्या को सूर्य ग्रहण होता है। किंतु राम रावण युद्ध के दौरान सूर्य ग्रहण बिना अमावस्या के हो गया था। मानस सम्मेलन में काफी संख्या में महिला-पुरुष श्रद्धालु उपस्थित हो भगवान की कथा का अमृत पान कर रहे थे।
रघुवंश के चंद्रमा थे दशरथ नंदन भरत: नीलम शास्त्री
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