परवेज अख्तर/सिवान :- ऐसा प्रतीत हो रहा है जैसे कुदरत पूरी तरह से मानव जाति से नाराज हो गई है, जिससे एक के बाद एक लगातार कुदरत का कहर मानव पर जारी है, जिससे सिर्फ मानव जीवन को खतरा बढ़ रहा है; बाकी अन्य जीव-जन्तु पर इसका कोई प्रभाव नहीं है। अभी विगत तीन माह से कोरोना रुपी अदृश्य शत्रु के मार से पूरी दुनिया में मानव त्राहि त्राहि कर रहा है, जिसका इलाज कोई तांत्रिक, वैद्य या वैज्ञानिक अभी तक नहीं खोज सके हैं; तभी किसानों की गेहूं की खड़ी फसल भी लगातार आँधी-तुफान और ओलावृष्टि से बर्बाद हो रही है, जिससे लगता है कुदरत मानव जाति के क्रिया-कलापों से पूरी तरह नाराज होकर सभी तरह से मानव को अपनी सत्ता साबित कर रही है कि कुदरत के आगे कोई विज्ञान या तंत्र नाकाफी है।
गौरतलब है कि जैसे ही गेहूं के पौधों में फूल लगने का समय आया तो लगातार आँधी और बारिश ने फसल को गिरा दिया । इसके बाद जब फसल पक कर तैयार हुई तो, बारिश ने फसल को और बर्बाद करने का काम किया । जैसे-तैसे किसान फसल की कटाई और दवनी में लगे ही थे कि रविवार को दिन में ओलावृष्टि फिर रविवार और सोमवार की रात्रि तथा बुधवार को सुबह में आई आँधी और बारिश ने बची-खुची फसल भी बर्बाद करने का काम कर दिया ।
इससे गेहूँ की फसल के साथ साथ सब्जी की खेती तथा आम और लीची की फसल को भी काफी नुकसान हुआ है । ऐसे में हर कोई ईश्वर की दुहाई देते हुए बस यही कह रहा है कि हमारे आडंबरों और क्रिया-कलापों से शायद सचमुच कुदरत नाराज हो गई है, जिससे ऐसी ही आपदाएँ आ रही हैं, जिससे मानव ही प्रभावित हो रहा है, कोई अन्य जीव नहीं ।