- सही समय पर थैलिसिमिया की जांच से नवजात हो सकता है सुरक्षित
- खून संबंधित समस्या का इतिहास हो तो करायें जाँच
- कोरोना के दौर में थैलिसिमिया पीड़ित रहें सतर्क
पटना: कोरोना संक्रमण के इस दौर में कई गंभीर रोगों की चर्चा नहीं हो पा रही है. लेकिन कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों ने कुछ गंभीर रोगों के लिए समस्या कहीं ज्यादा बढ़ा भी दी है. जिसमें थैलिसिमिया से ग्रसित लोग अधिक प्रभावित हुए हैं. थैलिसिमिया मेजर से ग्रसित लोगों को नियमित अंतराल पर खून की जरूरत होती है. कोरोना संक्रमणकाल में स्वैच्छिक रक्तदान में कमी भी आयी है जिससे ब्लड बैंक भी प्रभावित हुए हैं. इसकी बात इसलिए की जा रही है क्योंकि 8 मई को विश्व थैलिसिमिया दिवस मनाया जाता है एवं थैलिसिमिया के विषय में आम लोगों को जागरूक किया जाता है. इस वर्ष के विश्व थैलिसिमिया दिवस की थीम ‘थैलिसीमिया के लिए नए युग की शुरुआत: रोगियों के लिए नवीन चिकित्सा सुलभ और सस्ती बनाने के वैश्विक प्रयासों के लिए समय’ रखी गयी है.
थैलिसिमिया को लेकर सामाजिक जागरूकता जरुरी
पटना के पारस हॉस्पिटल के हेमोटोलोजिस्ट डॉ. अविनाश सिंह ने बताया थैलिसिमिया के कारण हीमोग्लोबिन की मात्रा कम हो जाती है. हीमोग्लोबिन के दोनों चेन अल्फा और बीटा चेन के कम निर्माण होने के कारण ऐसा होता है. मरीजों में दिखने वाले लक्षणों के तीव्रता के आधार पर इसे माइनर बीटा जिसमें मरीज में कोई भी लक्षण नहीं दिखता है एवं मेजर बीटा जिसमें शिशु में 6 माह के उपरांत लक्षणों के कारण प्रत्येक महीने खून चढाना परता है. जबकि थैलिसीमिया इंटरमिडीया भी एक स्थिति है जिसमें मेजर की अपेक्षा कम खून चढ़ाने की जरूरत होती है. बिहार की बात करें तो लगभग 2000 थैलिसीमिया मेजर से ग्रस्त मरीज है जो नियमित ब्लड ट्रांसफयूजन पर है। बीमारी की पहचान के लिए सी बी सी,हीमोग्लोबिन की विशेष जांच (एच बी एलेकट्रोफेरियेसिस) एवं जेनेटिक म्यूटेशन की जांच की जाती है. लेकिन थैलिसीमिया न हो या होने की क्या संभावना है का पता लगाने के लिए सामाजिक जागरूकता की अधिक आवश्यकता है जिसमें विवाह के पहले चिकित्सकीय परामर्श लें क्योंकि होने वाले पति और पत्नी दोनो अगर थैलिसीमिया माइनर है तो होनेवाले बच्चे का थैलिसीमिया मेजर होने की शंभावना 25 प्रतिशत अधिक होती है.
कोरोना काल में थैलिसिमिया से ग्रसित महिलाएं रहें सावधान
स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. चारू मोदी ने बताया कोरोना जनित वैश्विक महामारी से यूँ तो समस्त मानव जाति प्रभावित है परंतु 8 मई को विश्व थैलेसेमिया दिवस पर विशेष उल्लेख थैलेसेमिया पीड़ित गर्भवती महिलाओं का करना सार्थक होगा क्योंकि इनकी स्थिति अत्यंत जटिल है। थैलेसेमिया पीड़ित मरीज़ वैसे ही विभिन्न कारणों से अतिसंवेदनशील वर्ग में आते है और निरंतर सामयिक रक्ताधान( ब्लड ट्रांसफ्यूजन) ही इसका एकमात्र मानक उपचार है. ऐसे समस्त बन्दी की स्थिति में इस उपचार को उपलब्ध कराना अपने आप में एक अत्यंत जटिल समस्या है. ऐसे कठिन समय में प्रभावित सभी महिलाओं को विशेष सावधानी बरतने एवं हर सम्भव प्रयास कर उपचार लेने की आवश्यकता है.इसके लिए सरकार द्वारा भी उपयुक्त कदम उठाए जा रहे है तथा कई स्वयंसेवी संस्थानों द्वारा भी मदद उपलब्ध कराई जा रही है.
खून संबंधी समस्या का किसी भी प्रकार के इतिहास होने पर जांच जरुरी
नालन्दा मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. अमिता सिन्हा ने बताया थैलिसीमिया के प्रति सतर्कता जरुरी है. यदि किसी महिला को खून संबंधी समस्या हो या उनके रिश्तेदारों जैसे माता,पिता, नाना ,नानी इत्यादि को खून संबंधी कोई जटिल समस्या रही हो या कभी खून चढ़ाना पड़ा हो तो उन्हें थैलिसीमिया की जाँच जरुर करानी चाहिए. थैलिसीमिया माइनर होने की स्थिति में पति का परिक्षण आवश्यक है और दोनों के माइनर होने पर गर्भ में पल रहे भ्रूण का जांच किया जाता है एवं ऊसके नार्मल या माइनर होने पर ही गर्भावस्था जारी रखना चाहिए.
थैलिसीमिया पीड़ित कोरोना से भी रहें सावधान
पटना ओब्सटेट्रिक एंड गयनेकोलॉजिकल सोसाइटी की प्रेसिडेंट डॉ. नीलम ने बताया कोरोना संक्रमण काल में थैलिसीमिया पीड़ित कोरोना से भी सुरक्षित रहने का प्रयास करें. लॉकडाउन के कारण ब्लड बैंक भी प्रभावित हुए हैं. उन्होंने आम लोगों को स्वैच्छिक रक्तदान के लिए आगे आने की अपील की. उन्होंने बताया स्वैच्छिक रक्तदान से ही ब्लड बैंकों में खून की उपलब्धता सुनिश्चित की जाती है जो थैलिसीमिया जैसे रोगी के लिए जीवनदायनी है.