- सर्वव्यापी माहमारी से माहवारी नहीं रूकती
- माहवारी ब्रेसलेट होगा माहवारी स्वच्छता का प्रतीक
- माहवारी स्वच्छता को पर्दे में रखने के प्रचलन को तोड़ने की जरूरत
- बिहार में अभी भी 69% महिलाएं असुरक्षित पैड का कर रही इस्तेमाल
न्यूज़ डेस्क:- बेटियों, किशोरियों, महिलाओं या फिर सामाजिक और राजनैतिक शब्दों में आधी आबादी की जब भी हम बात करते हैं तो अमूमन हम शसक्तीकरण, विकास, अधिकार, हिंसा जैसे शब्दों पर ज्यादा बल देते हैं। माहवारी स्वच्छता की बात आज भी सामाजिक या पारिवारिक चिंतन का हिस्सा नहीं बन पाया है। हालाँकि सामाजिक संस्थाओं और संगठनों द्वारा पिछले कुछ दशकों में माहवारी स्वच्छता को आम जन के बीच चिंतन का हिस्सा बनाने की पुरजोर कोशिश की गई है। इन कोशिशों के फलस्वरूप ही आज सरकार भी माहवारी स्वच्छता पर थोड़ी तरजीह देना शुरू कर पाया है. लेकिन अभी भी यह प्रयास उस स्तर तक नहीं पहुंच पायी है, जहाँ से यह कहा जा सके कि सरकार ने अपनी अन्य प्राथमिकताओं की सूचि में इसे शरीक कर लिया है.
परिवार की प्राथमिकताओं से भी माहवारी स्वच्छता नदारद
माहवारी स्वच्छता आज भी राज्य, समाज और परिवार के प्राथमिकता सूचि में आखरी पायदान पर है। इस सबसे हालिया उदहारण है आज समाज में माहवारी स्वच्छता की स्थिति। जब कोरोना महामारी फैला तो हमारे देश की सरकारों ने बहुत घोषणाएं की मसलन राशन, कमजोर परिवारों के आर्थिक सहायता, महामारी से मरने वालों के लिए आर्थिक सहायता, बुजुर्गों को पेंशन राशि का अग्रिम भुगतान इत्यादि. लेकिन कहीं भी सेनेटरी पैड उपलब्ध कराने की बात नहीं कही गई। तर्क यह है कि यह आनिवार्य सेवा में नहीं आता और खासकर महामारी और विपदा में इसपर ध्यान नहीं दिया जा सकता। लेकिन प्राकृतिक आपदा हमेशा आती है और फिर वहां यही तर्क होता है और इसका भुगतान महिलाओं को ही करना पड़ता है। वास्तव में मामला प्राथमिकता का है। हाँ, कुछ संस्थाओं ने इस दिशा में बेहतर प्रयास किये हैं।
माहवारी स्वच्छता पर्दे में है कैद
जब सरकार अपने कार्यक्रम तय करती है तो यह भूल जाती है कि ये महिलाओं की वो जरुरत है जो नियमित तौर पर प्रति माह होती है। इस भूल का कारण यह नहीं है कि यह जरुरी नहीं या इसे किसी भी आपदा के समय सुनिश्चित नहीं किया जा सकता. इसका सबसे बड़ा कारण इसपर चुप्पी है। आज भी समाज में यह टैबू (निषेध) ही है। आज भी मेडिकल दुकान वाले इसे रद्दी पेपर, खाकी कागज या काले पॉलिथीन में ही देते हैं। आज भी जब हम घर के पूरे महीने भर का सामान लाते हैं तो उसमे नमक, हल्दी से लेकर टूथ पेस्ट और शैम्पू होता है. परन्तु सैनिटरी पैड नहीं होता. जबकि तक़रीबन हर घर में हर महीने इसकी आवश्यकता होती है। माहवारी स्वच्छता की बात तब तक बेईमानी ही रहेगी, जबतक यह राशन की सूचि में न आ जाय। यही हाल सरकार का भी है. किसी भी आपदा के दौरान हर चीज का ख्याल रखा जाता है, यहाँ तक कि जानवर के चारे का भी लेकिन सेनेटरी पैड सबको मिले यह सुनिश्चित नहीं किया जाता है. इतना ही नहीं हमारे समाज में आज भी कई भ्रांतियां व्याप्त हैं जिन्हें दूर करने के लिए परिवार, समाज और सरकार तीनों के पुरजोर कोशिश की जरुरत होगी। सामाजिक संस्थाएं इसमें अहम् भूमिका अदा कर रही हैं। इस कोशिश को और पुख्ता करने की साझा कवायद होनी चाहिए। यह एक ऐसा मसला है, जिसमे परिवार की भूमिका सबसे ज्यादा अहम् है। जहाँ निर्णय सबसे निचले स्तर पर होना है इसका मतलब है कि सामाजिक व्यव्हार परिवर्तन आवश्यक होगा और इसमें मीडिया सबसे अहम् भूमिका अदा कर सकती है।
सर्वव्यापी महामारी से माहवारी नहीं रूकती
28 मई को दुनियाभर में माहवारी स्वच्छता दिवस मनाया जाता है। इसकी शुरुआत वर्ष 2013 में “वाश यूनाइटेड” नाम की सामजिक संस्था ने किया था। वर्ष 2014 में यह पूरी दुनिया में मनाया गया। माहवारी स्वच्छता दिवस का उद्देश्य है: इसपर व्याप्त चुप्पी को तोड़ना, जागरूकता बढ़ाना, सम्बंधित सामाजिक रूढ़िवादिता/भ्रान्ति को समाप्त करना, नीति निर्माताओं को शामिल कर राजनैतिक प्रतिबद्धता को बढ़ाना। “सर्वव्यापी महामारी से माहवारी नहीं रूकती और न ही हम” इस वर्ष का नारा है। मासिक का आना किसी महामारी के लिए इंतजार नहीं कर सकता है. इसलिए जरुरी है कि कोविड-19 के रेस्पोंस में इसको भी शामिल किया जाय। ये मांग इस वर्ष माहवारी स्वच्छता दिवस के दौरान उठी है।
माहवारी ब्रेसलेट माहवारी स्वच्छता का प्रतिक
सामाजिक बदलाव में प्रतीकों (सिंबल) की भूमिका बहुत ही अहम् रही है. उदहारण स्वरुप आज हम सब लाल रिबन क्रॉस स्टाइल को एचआईवी/एड्स के रूप में पहचानते है। उन अनुभव के आधार पर इस बार माहवारी ब्रेसलेट को माहवारी एवं माहवारी स्वच्छता दिवस का प्रतीक बनाया गया है जिसमे 28 मोतियाँ हैं जिसमे 5 मोतियाँ लाल है. यह इस बात का प्रतिक है कि 28 दिन में 5 दिन माहवारी (रक्तस्राव) होता है। लोगों से अपील की गई है कि आप इसे पहनकर पुरे अभियान को समर्थन दें। 28 और 5 को दर्शाते हुए, ये ब्रेसलेट किसी भी चीज से रचनात्मक रूप में बनाई जा सकती है।
बिहार में अभी भी 69% महिलाएं असुरक्षित पैड के इस्तेमाल करने पर बाध्य
शसक्तीकरण की दलीलें उपहास करती प्रतीत होती है जब यह ज्ञात होता है कि अभी भी बिहार में 69% महिलाएं ऐसी हैं जो माहवारी के दौरान सुरक्षित सेनेटरी पैड का इस्तेमाल नहीं कर पाती हैं. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 द्वारा जारी ये आंकड़ें राज्य सरकार की माहवारी स्वच्छता को लेकर किये जा रहे प्रयासों की वास्तविक तस्वीर बयां करती दिखती है. ऐसा नहीं है कि केवल बिहार ही माहवारी स्वच्छता सुनिश्चित करने में नाकाम रहा है, बल्कि देश भी इस दिशा में कोई उल्लेखनीय सफलता अर्जित करती नहीं दिखती है. भारत में भी 54% महिलाएं माहवारी के दौरान सुरक्षित पैड का इस्तेमाल करने से वंचित हो जाती हैं.