परवेज़ अख्तर/सिवान :- वैश्विक महामारी कोरोना के चलते रविवार को इमाम हुसैन की इबादत में मुहर्रम पर ताजिया के साथ किसी भी प्रकार का जुलूस नहीं निकलेगा। मुहर्रम के दिन हजरत इमाम हुसैन की याद में मुस्लिम समुदाय के लोग मातम मनाते हैं। मान्यता है कि इस दिन इमाम हुसैन की शहादत हुई थी, जिसके चलते इस दिन को रोज-ए-आशुरा भी कहा जाता है। मुहर्रम मातम मनाने व धर्म की रक्षा करने वाले हजरत इमाम हुसैन की शहादत को याद करने का दिन है। इस महीने में मुस्लिम समुदाय के लोग शोक मनाते हैं और अपनी खुशी का त्याग करते हैं। इमाम महफुर्जरहमान काशमी ने बताया कि इस्लाम धर्म के नए साल की शुरुआत मुहर्रम महीने से होती है, यानी कि मुहर्रम का महीना इस्लामी साल का पहला महीना होता है, इसे हिजरी भी कहा जाता है।
इस दिन मुहर्रम अधर्म पर धर्म की जीत का प्रतीक होता है।क्यों मनाया जाता है मुहर्रम इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार इराक में यजीद नाम का जालिम बादशाह इंसानियत का दुश्मन था, यजीज खुद को खलीफा मानता था। हालांकि उसको अल्लाह पर भरोसा नहीं था औऱ वो चाहत रखता था कि हजरत इमाम हुसैन उसके खेमे में शामि हो जाएं। लेकिन हुसैन को यह मंजूर नहीं था औऱ उन्होंने यजीद के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया। पैगंबर-ए-इस्लाम हजरत मोहम्मद के नवासे हजरत इमाम हुसैन को कर्बला में परिवार औऱ दोस्तों के साथ शहीद कर दिया गया था। जिस महीने हुसैन औऱ उनके परिवार को शहीद किया गया था, वह मुहर्रम का ही महीना था।
नहीं निकलेगा अखाड़े का जुलूस कोविड- 19 को लेकर जिला प्रशासन द्वारा मुहर्रम के मौके पर स्पष्ट कर दिया है कि धार्मिक अवसरों पर लोगों का सार्वजनिक स्थलों या धार्मिक स्थलों पर इकट्ठा होना प्रतिबंधित किया गया है। इस संबंध में डीएम अमित कुमार पांडेय ने बताया कि मुहर्रम के अवसर पर अलम, ताजिया, सिपर अथवा आखाड़े का कोई जुलूस नहीं निकाला जाएगा। शस्त्र प्रदर्शन भी नहीं होगा और लाउडस्पीकर और डीजे का उपयोग प्रतिबंधित रहेगा। किसी भी सार्वजनिक स्थल पर ताजिया नही रखा जायेगा और अखाड़े का आयोजन भी नहीं किया जाएगा। कहा कि इमामबाड़ा/अजाखाना/जरीखाना की साफ सफाई, रौशनी व सजावट आदि की जाएगी परंतु उसमें भीड़ को इकट्ठा नहीं होने दिया जाएगा। घरों में ही केवल परिवार के सदस्यों के साथ शारीरिक दूरी का पालन करते हुए मजलिस का आयोजन करने की अनुमति रहेगी।