- डॉ. शिशुपाल राव ड्यूटी से इतर सेवा भाव को देते रहे तरजीह
- कोरोना संक्रमितों की पहचान से लेकर उनके उपचार में रहे सरीक
- मजबूत इरादों को बताया कोरोना से सुरक्षित रहने का मुख्य हथियार
नवादा: सामान्य गति से चल रही जीवन में अचानक उथल-पुथल आना सिर्फ़ चुनौतियों को नहीं बढ़ाता है, बल्कि इससे बचाव की संभावनाओं पर भी प्रश्नचिह्न खड़े कर जाता है. चीन से शुरू हुयी कोरोना की लहर भी कुछ ऐसी ही थी. न्यूज़ चैनलों से होकर कोरोना कब और कैसे भारत की सीमा में प्रवेश किया इसका सटीक अंदाजा लगा पाना मुश्किल है. भारत में कोरोना की शुरुआत होते ही यह हवाओं एवं चौड़ी सड़कों से होते हुए छोटे-छोटे शहरों के साथ गाँव की कच्ची सड़कों पर अपना घर बनाने को जैसे ही आतुर दिखा. वैसे ही इसे रोकने के लिए स्वास्थ्य कर्मी दीवार बनकर इसके रास्ते में खड़े होने शुरू हो गए. बिहार के नवादा जिले के गोविंदपुर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के मेडिकल ऑफिसर डॉ. शिशुपाल राव भी उन्हीं लोगों में शामिल थे, जो कोरोना को गाँवों की पगडंडियों पर अपना घर बनाने की अनुमति देने को तैयार नहीं थे. पीपीई किट, मास्क एवं ग्लब्स को एक हथियार की तरह इस्तेमाल करते हुए डॉ. राव भी कोरोना संक्रमण की शुरुआत होते ही मुस्तैदी से अपना कार्य करना शुरू किया. ड्यूटी से इतर डॉ. राव मानव सेवा को तरजीह देने का इरादा बना चुके थे. इन्हीं इरादों एवं हौसलों का नतीजा था कि वह घर-घर जाकर कोरोना संक्रमण काल में वह कोरोना संक्रमितों की पहचान करने के कार्य में भी जुट गए. अपनी नियमित ड्यूटी के साथ संक्रमण काल में उन्हें कई अतिरिक्त जिम्मेदारियां भी मिली, जिसे वह पूरी तन्मयता के साथ पूरी भी करते रहे.
सेवा भाव ही चिकित्सक का पर्याय है
डॉ. शिशुपाल राव कहते हैं- एक चिकित्सक की जिम्मेदारी सिर्फ़ शारीरिक रोगों से व्यक्ति को निज़ात दिलाने तक सीमित नहीं है. चिकित्सा शब्द ही सेवा भाव से जुड़ा है. इस नाते एक चिकित्सक की भूमिका स्वतःलोगों की सेवा करने से जुड़ जाती है. कोरोना संक्रमण की शुरुआत होने के बाद कोरोना से लड़ने के लिए स्वास्थ्य विभाग के पास उपलब्ध संसाधनों को लेकर कई सवाल खड़े हुए. यह सत्य भी था कि कोरोना एक नयी एवं गंभीर महामारी थी, जिसकी तुरंत तैयारी कर लेना सरकार के लिए भी चुनौतीपूर्ण थी. लेकिन ऐसी स्थिति में भी स्वास्थ्य कर्मी एक ऐसे संसाधन के रूप में सामने आये जिन्होंने फिजिकल संसाधनों की कमी को न सिर्फ़ पूरा किया बल्कि काफी असरदार भी साबित हुए. उन्होंने बताया वह भी इस मुहिम का हिस्सा बने. शुरूआती दौर में लोगों में कोरोना को लेकर जानकारी बहुत सीमिति थी. साथ ही कोरोना को लेकर एक भय भी था. ऐसी स्थिति में लोगों को परामर्श के साथ सहारे की भी जरूरत थी. इसलिए वह नियमित तौर पर ओपीडी सेवा देने के साथ कोरोना पीड़ितों को राहत पहुँचाने के कार्यों में शामिल होने से परहेज नहीं किया.
मानसिक सबलता इस दौर का सबसे बड़ा हथियार
डॉ. शिशुपाल राव कहते हैं- जिले में कोरोना संक्रमण के मामलों की शुरुआत होते ही पूरा स्वास्थ्य महकमा मुस्तैदी से कार्य करना शुरू कर चुका था. वह ख़ुद भी क्वारंटाइन एवं आईसोलेशन केन्द्रों का दौरा कर रहे थे. इस दौरान कई बार उन्हें रात की ड्यूटी भी वहाँ करनी होती थी. डॉ. राव कहते हैं यह एक ऐसा दौर था जहाँ एक तरफ़ संक्रमण फैलने का भय था, तो दूसरी तरफ़ एक चिकित्सक की नैतिक ज़िम्मेदारी. लेकिन इस अंतर्द्वंद में संक्रमण को लेकर भय खत्म भी होता रहा. इस दौरान मानसिक सबलता कोरोना के सामने एक मजबूत दीवार की तरह उभर कर आई, जो एक चिकित्सक को अपने दायित्वों के निर्वहन की शक्ति प्रदान तो कर ही रही थी. साथ ही आम लोगों के लिए भी कोरोना को शिकस्त देने की एक बेहतर तरकीब बनी.
मुश्किलों के आगे घुटने नहीं टेका
कोरोना संक्रमण से लोगों को बचाने की मुहिम में कई स्वास्थ्य कर्मी कोरोना पॉजिटिव भी हुए. इस पर अपनी राय रखते हुए डॉ. राव ने कहा- गोविंदपुर में भी कई स्वास्थ्य कर्मी कोरोना पॉजिटिव हुए. लेकिन तब भी स्वास्थ्य कर्मियों ने कोरोना के आगे घुटने नहीं टेके. उन्होंने बताया कि मुश्किलें उनकी टीम का हौसला पस्त नहीं कर सका, बल्कि इससे एक नयी उर्जा में वृद्धि ही हुयी. इसका ही परिणाम है कि कोरोना के खिलाफ़ यह मुहिम अब भी जारी है. चुनौतियाँ अब भी है. लेकिन कोरोना को मात देने की रणनीति पहले से अधिक सुदृढ़ है. उन्होंने आम लोगों से अपील करते हुए कहा- मानसिक सबलता एवं कोरोना रोकथाम के उपायों के प्रति गंभीरता ही अभी के दौर में ऐसे हथियार हैं जो कोरोना की दस्तक को आपके घर में पहुँचने से रोक सकती है.