गोपालगंज: लव जिहाद का इस्लाम में कोई वजूद नहीं, बल्कि ये शब्द भी कभी इस्तेमाल नहीं हुआ. इस्लाम गैर मुस्लिम से शादी की इजाज़त ही नहीं देता. यह उनको भी मुसलमान नहीं समझता, जो मुसलमान घर में पैदा तो हो जाए, परंतु अपनी अक्ल से इस्लाम को ना पढ़ें, ना समझे और ना ही उसकी शिक्षाओं पर अमल करे। उक्त बातें मीडिया हाऊस के प्रबंधक नौशाद अली ने कही। उन्होंने आगे कहा कि राज्य सरकारें जिस तथाकथित लव जिहाद के खिलाफ कानून बना रहीं हैं या फिर बनाने जा रही है. उसका इस्लाम में कोई वजूद ही नहीं है, अपितु इस्लाम तो खुद अनाचारपूर्वक धर्म परिवर्तन करने व कराने वालों की मुखालफत करता है.
इस्लाम दावत देता है सिर्फ़ अक़्ली बहस की. अगर किसी भी धर्म का इन्सान, पढ़ कर समझ कर दलीलों को कुबूल करके इस्लाम को अपनाता है, तो ही वो इस्लामी शादी कर सकता है. ना की ज़ाहिरी मुहब्बत में पड़ कर, इस्लाम किसी भी धर्म का अनादर करने की बात नहीं करता है , बल्कि अपनी विचारधारा पेश करता है, और लोगों को प्रेरित करता है कि वो इस विचारधारा के अनुसार कर्म करके एक अच्छे इंसान बने. जिससे किसी दूसरे को कोई कष्ट ना पहुंचे।