पटना: पार्टी कार्यकर्ताओं को तरजीह दिए जाने की लकीर को जदयू ने और लंबा कर दिया है। इस बारे में सभी तरह के समीकरण को नजरअंदाज कर निर्णय लिया गया। दिलचस्प यह भी रहा कि जिन दो लोगों को जदयू ने राज्यसभा भेजे जाने का फैसला लिया वे बिहार के रहने वाले भी नहीं है। योग्यता सिर्फ यह कि पार्टी के लिए कई दशकों से काम करते रहे है। राज्यसभा की दो सीटों पर जदयू ने जिन दो प्रत्याशियों के नाम का एलान किया वह समता पार्टी के जमाने से ही नीतीश कुमार से जुड़े है। अनिल हेगड़े की तरह खीरू महतो भी लंबी अवधि से पार्टी के लिए काम करते रहे है।
कार्यकर्ताओं को उत्साहित करने की बात अनिल हेगड़े के साथ बढ़ी
लंबी अवधि तक जदयू के राज्यसभा सदस्य रहे उद्योगपति किंग महेंद्र के निधन से रिक्त हुई सीट पर जदयू किसे भेजेगा इस पर राजनीतिक गलियारे में खूब चर्चा हुई। नीतीश कुमार ने इस सीट को लेकर जो निर्णय किया वह चौकाने वाला रहा। किसी को इस बात का एहसास ही नहीं था। सभी तरह के जातिगत व राजनीतिक समीकरण को ताक पर रखते हुए उन्होंने पार्टी के लिए लंबी अवधि से काम करने वाले अनिल हेगड़े को राज्यसभा भेजने का फैसला कर लिया। अनिल हेगड़े कर्नाटक के रहने वाले है। वह निर्विरोध राज्यसभा गए। इस चयन को लेकर पार्टी में किस तरह का विवाद भी नहीं हुआ। उल्टे यह बयान आने लगे कि कार्यकर्ता को महत्व दिए जाने से पुराने कार्यकर्ताओं में उत्साह है।
खीरू महतो का नाम भी पुराने कार्यकर्ताओं में शुमार
आरसीपी सिंह की जगह जिस खीरू महतो को जदयू ने अपना प्रत्याशी बनाया वह जदयू के लोगों के लिए भी चौैंकाने वाला था। इस सीट के लगभग आधा दर्जन नाम चर्चा में थे। हर दिन यह कहा गया कि फलां नाम पक्का है। पर आखिरकार में चौकाने वाला नाम आया खीरू महतो का। खीरू महतो जदयू के लिए इस वजह से महत्वपूर्ण बने, क्योंकि उनके नाम के साथ भी पार्टी के पुराने कार्यकर्ता की ब्रांडिंग थी। समता पार्टी के समय से ही एकनिष्ठ रहने का उन्हें पुरस्कार मिल गया।