परवेज अख्तर/सीवान : पुत्रों की सलामती को लेकर महिलाएं मंगलवार को जीवित पुत्रिका व्रत करेंगी। इसको लेकर महिलाओं में काफी उत्साह देखा जा रहा है। महिलाएं सोमवार को नहाय-खाय के साथ रात्रि में पितरों को तरोई के पत्ता पर अपने नियमानुसार भोजन अर्पित करेंगी और अपने सरगही ग्रहण कर मंगलवार को पूरे दिन निराजल रहेंगी। इस दौरान पुत्रवती महिलाएं गले या बांह में जिउतिया ग्रहण करेंगी। दोपहर के बाद स्नान करने के बाद घरों में या मंदिरों में पहुंच आचार्यों द्वारा जीवित पुत्रिका व्रत की कथा सुनेंगी और पूरे दिन एवं रात निराजल रहने बाद अगले दिन बुधवार की अल सुबह बने व्यंजन को तरोई के पत्ते पर चिल्होड़-चिल्होरिन को अर्पित करने तथा ब्राह्मणों को दक्षिणा देकर पारण करेंगी।
जिउतिया व्रत नियम
इस व्रत को करते समय केवल सूर्योदय से पहले ही खाया पिया जाता है। सूर्योदय के बाद व्रती कुछ भी खाने-पीने की सख्त मनाही होती है। इस व्रत से पहले केवल मीठा भोजन ही किया जाता है, तीखा भोजन करना अच्छा नहीं होता। जिउतिया व्रत प्रारंभ होने के बाद कुछ भी खाया या पिया नहीं जाता। इसलिए यह निर्जला व्रत कहलाता है। व्रत का पारण अगले दिन प्रातःकाल किया जाता है जिसके बाद कैसा भी भोजन कर सकते हैं।
पूजा विधि
आश्विन माह की कृष्ण अष्टमी को प्रदोषकाल में महिलाएं जीमूतवाहन की पूजा करती है। माना जाता है जो महिलाएं जीमूतवाहन की पूरे श्रद्धा और विश्वास के साथ पूजा करती है उनके पुत्र को लंबी आयु एवं सभी सूखों की प्राप्ति होती है। पूजन के लिए जीमूतवाहन की कुशा से निर्मित प्रतिमा को धूप-दीप, चावल, पुष्प आदि अर्पित किया जाता है। इसके साथ ही मिट्टी तथा गाय के गोबर से चील एवं सियारिन की प्रतिमा बनाई कर पूजा की जाती है। सिसवन के कचनार निवासी पंडित हरिशंकर उपाध्याय ने बताया कि पुत्र की लंबी आयु, आरोग्य तथा कल्याण की कामना से स्त्रियां इस व्रत को करती हैं। जो महिलाएं पूरे विधि-विधान से निष्ठापूर्वक कथा सुनकर ब्राह्मण को दान-दक्षिणा देती है, उन्हें पुत्र सुख एवं समृद्धि प्राप्त होती है।