परवेज अख्तर/सिवान:- महाराजगंज के अनुमंडल बनने के 27 साल बाद भी यहां व्यवहार न्यायालय की स्थापना नहीं हो सकी है। जबकि महाराजगंज को अनुमंडल का दर्जा मिले 27 साल हो गया। 27 साल पूर्व 1 अप्रैल 1991 को तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने महाराजगंज के अनुमंडल होने की घोषणा की थी। उसी दिन से महाराजगंज, दरौंदा, बसंतपुर, भगवानपुर हाट, लकड़ी नवीगंज व गोरेयाकोठी प्रखंड को मिलाकर महाराजगंज अनुमंडल अस्तित्व में आ गया। गंडक परिसर में काम भी होने लगा। यहां व्यवहार न्यायालय के उद्घाटन की मांग को ले धरना, प्रदर्शन व आंदोलन चलता रहता है। अनुमंडलीय अधिवक्ता संघ के सचिव दिनेश प्रसाद सिंह ने बताया कि महाराजगंज के साथ बने अनुमंडल में व्यवहार न्यायालय का उद्घाटन हो गया है। लेकिन, दुर्भाग्य से महाराजगंज में सभी संसाधन रहने के बावजूद व्यवहार न्यायालय की स्थापना नहीं होना आश्चर्य का विषय है। बताया कि पुराने अनुमंडल कार्यालय में 16 लाख की लागत से न्यायिक प्रकोष्ठ की स्थापना भी हो गई है। कर्मचारी भी नियुक्त हो गए। 26 मई 2015 को उद्घाटन की तिथि भी तय हो गई। लेकिन, किसी कारणवश उद्घाटन नहीं हो सका। जिसके चलते कीमती उपस्कर व उपकरण बेकार पड़े हैं। वहीं बहाल कर्मचारी समय काट रहे हैं। बताया कि इतने लंबे समय बाद व्यवहार न्यायालय का नहीं होना स्थानीय जनप्रतिनिधियों की कमजोर इच्छाशक्ति का परिचायक है। अनुमंडल क्षेत्र में महाराजगंज व दरौंदा को मिलाकर एक एमपी व दो विधायक हैं। व्यवहार के लिए अधिवक्ता संघ कई लड़ाइयां लड़ चुका है। लेकिन सिर्फ सांत्वना मिली है। पूर्व में चला आंदोलन डीजे के आश्वासन पर स्थगित है। शीघ्र व्यवहार न्यायालय का उद्घाटन नहीं हुआ तो वृहद पैमाने पर अनिश्चितकालीन आंदोलन शुरू किया जाएगा।
व्यवहार न्यायालय के लिए 6 एकड़ भूमि उपलब्ध
अनुमंडलीय अधिवक्ता संघ के सचिव ने बताया कि अनुमंडल परिसर में व्यवहार न्यायालय के लिए 6.65 एकड़ जमीन भी चिन्हित हो गई है। यह भूमि अनुमंडलीय अस्पताल के पीछे है। बताया कि 28 अक्टूबर 2014 को उच्च न्यायालय ने व्यवहार न्यायालय के लिए भूमि की मांग की। जिसके बाद समाहर्ता सीवान ने अनुमंडलीय व्यवहार न्यायालय कार्यालय व न्यायिक पदाधिकारियों के आवास को ले भूमि को चिन्हित कर उच्च न्यायालय को विवरण भेज दिया। लेकिन, आजतक काम शुरू नहीं हुआ है।