✍️परवेज़ अख्तर/सिवान:
कृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार जिला मुख्यालय समेत ग्रामीण क्षेत्रों में बुधवार को मनाया जाएगा। इसके लिए घरों से लेकर मंदिरों में विशेष तैयारियां की गई है। विशेषकर घरों व राधा कृष्ण मंदिरों में बाल कृष्णा के लिए आकर्षक झूला एवं झांकी की तैयारी की गई है। वहीं पूजन के साथ-साथ भजन कीर्तन का भी आयोजन किया जाएगा।आंदर के पड़ेजी निवासी आचार्य पंडित उमाशंकर पांडेय ने बताया कि भगवान श्रीकृष्णा का जन्म भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में अर्द्धरात्रि के समय हुआ था। कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को किया जाता है। ऐसे में बुधवार को अर्द्धरात्रि व्यापिनी है। इसमें जन्माष्टमी मनाया जाएगा। मान्यता है कि इस योग में उपवास करने से जातक जन्म बंधन से मुक्त हो जाता है। वहीं मृत्युपरांत आत्मा बैकुंठ में निवास करती है। इस दिन विष्णु सहस्त्रनाम, श्रीकृष्ण स्त्रोत पाठ, संतान गोपाल स्त्रोत एवं हरिवंश पुराण का पाठ करना चाहिए। आचार्य ने बताया कि जन्माष्टमी तिथि छह सितंबर को दोपहर दो बजकर 39 मिनट से शुरू होगी। इसमें निशिथ काल में रोहिणी नक्षत्र में सात 10 बजकर 40 मिनट से 11 बजकर 38 मिनट तक भगवान कन्हैया का जन्म होगा। व्रत रहने वाले गुरुवार की सुबह पारण करेंगे। इस वर्ष जन्माष्टमी अत्यंत शुभकारी है। यह व्रत सर्वमान्य और पापों को नष्ट करने वाला व्रत बाल, कुमार, प्रौढ़, युवा, वृद्ध और इसी अवस्था वाले नर-नारियों के करने योग्य है। इससे पापों की निवृति और सुखादि की वृद्धि होती है।
ऐसे करे पूजन :
सुबह स्नान कर विष्णु अवतार भगवान श्रीकृष्ण के समक्ष व्रत का संकल्प करें। इसके बाद पूरे दिन श्रद्धानुसार व्रत रखें। व्रत अपनी इच्छानुसार निर्जल या फिर फलाहार लेकर रहें। कान्हा के लिए भोग-प्रसाद आदि बनाएं। शाम को श्रीकृष्ण भगवान का भजन कीर्तन करें। रात में नार वाले खीरे में लड्डू गोपाल को बैठाकर कन्हैया का जन्म कराएं। नार वाले खीरे का तात्पर्य माता देवकी के गर्भ से लिया जाता है। इसके बाद भगवान को दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल से स्नान कराएं। सुंदर वस्त्र, मुकुट, माला पहनाकर पालने में बैठाएं। फिर धूप, दीप आदि जलाकर पीला चंदन, अक्षत, पुष्प, तुलसी, मिष्ठान, मेवा, पंजीरी, पंचामृत आदि का भोग लगाएं। श्रीकृष्ण मंत्र का जाप कर श्रद्धापूर्वक आरती करें। इसके बाद प्रसाद बांटे और खुद भी सुबह प्रसाद खाकर व्रत का पारण करें।