✍️परवेज़ अख्तर/सिवान:
संतान की सलामती व दीर्घायु को ले माताएं शुक्रवार को जीवित पुत्रिका यानी जिउतिया व्रत रखेंगी। इस दाैरान वे निर्जल व्रत रखकर प्रचलित पौराणिक कथाओं का श्रवण कर भगवान सूर्य व राजा जीमूतवाहन की पूजन करेंगी। साथ ही संतान के यशस्वी होने व उनकी कल्याण की कामना करेंगी। पर्व को लेकर तैयारियां पूरी कर ली गई है। आंदर के पड़ेजी निवासी आचार्य पंडित उमाशंकर पांडेय ने बताया कि सप्तमी को नहाय खाय, अष्टमी को निर्जला व्रत व नवमी को पारण का विधान है।
नहाय-खाय के साथ शुरू हुआ समृद्धि व वैभव का महापर्व :
नहाय खाय के साथ गुरुवार से संतान की लंबी आयु, सुख समृद्धि व वैभव का महापर्व जिउतिया शुरू हो गया। इस दौरान घर पर महिलाओं ने मड़ुआ के आटे से बनी रोटी के साथ तरोई (झिंगी) व नोनी साग की बनी सब्जी से बना प्रसाद तैयार कर भगवान को भोग लगाने के बाद स्वयं ग्रहण किया।
कथा का श्रवण कर धारण करेंगी जिउतिया :
आचार्य ने बताया कि व्रत के दिन सुबह स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण कर कुश से बनी जीमूतवाहन भगवान की प्रतिमा के समक्ष धूप-दीप, चावल व पुष्प अर्पित कर पूजा अर्चना करनी चाहिए। गाय के गोबर व मिट्टी से बने चील व सियारिन की मूर्ति बनाकर उनकी पूजा करनी चाहिए। साथ ही जिउतिया व्रत की कथा का श्रवण कर जिउतिया धारण करनी चाहिए।
महाभारत काल से जुड़ा है व्रत :
बताया कि जब महाभारत का युद्ध समाप्त हो गया था तो पांडवों की अनुपस्थिति में अश्वत्थामा ने अपने साथियों के साथ उनके सैनिकों व द्रौपदी के पुत्रों का वध कर दिया था। दूसरे ही दिन केशव को सारथी बनाकर अर्जुन ने अश्वत्थामा का पीछा किया और उसे कैद कर लिया, लेकिन श्रीकृष्ण के यह कहने पर कि ब्राह्मणों का वध नहीं करना चाहिए। अर्जुन ने अश्वत्थामा का सिर मुंडवाकर छोड़ दिया था। इस घटना से अश्वत्थामा अपमानित महसूस कर अपना अमोघ अस्त्र अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ पर चला दिया। स्थिति को भांपते हुए श्रीकृष्ण ने सूक्ष्म रूप धारण कर उत्तरा के गर्भ में प्रवेश किया और अमोघ अस्त्र को अपने शरीर पर झेल कर शिशु की रक्षा की। यही पुत्र आगे चलकर परीक्षित के नाम से प्रसिद्ध हुए। उसी समय से माताओं द्वारा व्रत की परंपरा है।