सियासी राजनीति का गेम चेंजर है ओसामा का परिवार

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  • शहाबुद्दीन चार बार सांसद व दो बार विधायक रहे
  • हिना के तीन चुनावों में हार के बाद भी है मजबूत पकड़

✍️परवेज़ अख्तर/एडिटर इन चीफ:
बिहार के संसदीय राजनीति में तकरीबन दो दशक डॉ.मो.शहाबुद्दीन बने रहे.कोरोना संक्रमण से शहाबुद्दीन की मौत के बाद उनके राजनीतिक उतराधिकारी के रूप में एकलौते बेटे ओसामा शहाब को उनके समर्थक देखते रहे हैं.हालांकि शहाबुद्दीन की गिरफ्तारी के बाद सीवान सीट से उनकी पत्नी हिना शहाब ही तीन बार चुनाव लड़ चुकी हैं.जिसमें उन्हें हार का सामना करना पड़ा.फिर भी राजनीतिक जानकारों के मुताबिक यहां के सियासी राजनीति का गेम चेंजर के रूप में ओसामा का परिवार बना हुआ है. ऐसे में लोकसभा चुनाव को लेकर जब सरगर्मी बढ़ने लगी है,ऐसे वक्त में आपराधिक मुकदमे में ओसामा की गिरफ्तारी के बाद जेल जाने से उनके समर्थकों का मायूस होना स्वाभाविक है.ओसामा की गिरफ्तारी व आनेवाले चुनाव को जोड़कर कई तरह के कयास लगने लगे हैं.डॉ.मो.शहाबुद्दीन दो बार विधायक व चार बार सांसद रहे.वर्ष 2007 में एक हत्या के मामले दोषी ठहराये जाने पर चुनाव लड़ने से अयोग्य करार दिये गये.ऐसे में वर्ष 2009 का लोकसभा चुनाव उनकी पत्नी हिना शहाब लड़ी.जिसमें हार का सामना करना पड़ा.

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इसके बाद राजद ने वर्ष 2014 में लोकसभा सीवान सीट से उम्मीदवार बनायी.इस चुनाव में भी हार ही मिली. वर्ष 2019 के संसदीय चुनाव में हिना शहाब को शिकस्त मिली.एक बार फिर लाेकसभा के होनेवाले चुनाव में हिना के मैदान में उतरने की चर्चा शुरू हो गयी है.लेकिन खास बात यह है कि लालू परिवार के कभी सबसे निकट माने जाने वाले इस शहाबद्दीन के परिवार का अब राजद से दूरी की चर्चा आम है.यहां तक की अब यह चर्चा बनी हुयी है कि इस परिवार ने राजद से नाता तोड़ लिया है.ऐसे में अगला चुनाव किस दल से लड़ेंगी इसको लेकर असमंजश समर्थकों में भी है.सीवान की राजनीति का गेम चेंजर इस रूप में आज भी कहा जाता है कि तीन चुनाव में हार के बाद भी वोट की संख्या बड़ी रही.इसमें भी मुस्लिम मतदाताओं की बड़ी संख्या है.जिनमें से एक बड़ा हिस्सा अभी भी इनके करीब है.

ऐसे में इनका अपनी पक्ष में जीत कराने की बात हो या विरोधियों के समीकरण बिगाड़ देने की, दोनों स्थिति में ओसामा के परिवार को गेम चेंजर होने से इंकार उनके राजनीतिक विरोधी भी नहीं करते हैं. तकरीबन 17 वर्ष की उम्र में ओसामा पर जब पहली बार जून 2014 में मुकदमा दर्ज हुआ था,उस समय डॉ.मो.शहाबुद्दीन जेल में थे.इसके बाद ओसामा पर तीन मुकदमे दर्ज हुए.जिसमें से अनुसंधान में दो में कोई सबूत न मिलने पर पुलिस ही नाम बाहर कर दी. ओसामा के किसी चुनाव न लड़ने के बाद भी राजनीतिक गतिविधियां हमेशा बनी रही है.अब ऐसे हाल में जब ओसामा पुलिस के गिरफ्त में है,तो उनके परिवार व समर्थकों को एक बड़ा धक्का लगना स्वाभाविक है.इस हालात में एक खास दल से इनके समर्थकों की नाराजगी भी बढ़ेगी. हालांकि सीवान व मोतीहारी में दर्ज मुकदमा जमानतीय धाराओं में है.जिससे जल्द कानूनी प्रक्रिया से राहत मिल सकती है.इन सब हालात में आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर परिवार के फैसले पर राजनीतिक विरोधियों व समर्थकों की नजर टिकी हुयी है.