बड़हरिया: माहे रमजान नेकियों से भरा इंसानी नफ्स को काबू करने की तालीम देता है: मौलाना मोहम्मद शाहिद नूर

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✍️परवेज अख्तर/सिवान: बड़हरिया प्रखंड के सुरहियां गांव के मौलाना मोहम्मद शाहिद नूर ने रमजानुल मुबारक पर फजीलत बयान करते हुए कहा कि माहे रमजान में अर्श से फर्श तक रहमतों की लगातार बारिश होती है।रमजान का यह पाक और नेकियों भरा माह इंसानी नफ्स (मानवेंद्रियों) को काबू करने की तालीम देता है।साथ ही भूखे की भूख व प्यासे की प्यास को जानने समझने की नसीहत देकर इंसानी फर्ज की याद दिलाता है। दरअसल रोजेदार मुसलमान के जहन पर खुदा की खुदाबंदी और अपनी बंदगी का एहसास होना ही रमजान का असल मकसद है।इन दिनों में रोजेदार बंदा खुदा की बंदगी में अपने आपको इतना मसरूफ और मारूफ कर ले कि उसकी तमाम बुराइयाँ और शैतानी खयालात हमेशा के लिए उसकी जिंदगी से निकल जाएँ,यही मकसद है।

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इस प्रकार यह माह इंसान को इंसानियत का पैगाम देकर प्यार-मोहब्बत,भाई-चारे,आपसी खलूसी और इंसान को इंसान के लिए मददगार बनने की राह दिखाता है,जिसकी आज सख्त जरूरत है।रमजान माह में अल सुबह (सादिक के वक्त) सूरज निकलने के पहले से लेकर शाम को मगरिब की अजान (सूर्यास्त) होने तक कुछ भी खाने-पीने की हसरत करना तक हराम करार दिया गया है।रोजा अफ्तार करने के बाद ही खाना-पीना जायज है। इसमें गौरतलब बात यह है कि सिर्फ खाना-पीना छोड़ देना अर्थात भूखा रहने का नाम रोजा नहीं और खुदा भी ‘सिर्फ भूखे’ से खुश नहीं।खुदा तो उन रोजेदारों से खुश रहता है जो रोजे के अरकानों को पूरी अकीदत और ईमान के साथ अदा करते हैं।

रोजे की हालत में यह जरूरी है कि रोजेदार हर बुराई से अपने को दूर रखकर रोजे की नफासत और पाकीजगी को पुख्ता करें।सच्चाई की राह पर चलते हुए गिड़गिड़ाकर खुदा से अपने गुनाहों की माफी मांगे और साथ ही खुदा को हाजिर-नाजिर मानकर यह भी अहद करे कि आइंदा गुनाह में शुमार होने वाले काम हम कभी नहीं करेंगे।रोजेदार पाँचों वक्त की पाबंदी के साथ नमाज अदा करें।रमजान के दिनों में पाँचों वक्त (फजर, जोहर, असर, मगरिब और इशा) की नमाजों के अलावा इशा की नमाज के साथ बीस रकाअत नमाज तराबीह के तौर पर अदा करना लाजिम है।यह नमाज जहाँ तक मुमकिन हो हाफिजे कुरआन की इमामत में पढ़ना सबसे अफजल होती है।