परवेज अख्तर/सिवान: जिले के भगवानपुर हाट प्रखण्ड के सोनबरसा गांव में आयोजित हनुमत प्राण प्रतिष्ठा सह शतचंडी महायज्ञ के आठवें दिन भी गोविन्द जी महाराज के द्वारा श्रीमद्भागवत महापुराण के दसवें स्कंध से श्री कृष्ण जन्मोत्सव की कथा सुनाई गई .इस अवसर पर गोविन्द जी महाराज ने कहा की भगवान श्रीकृष्ण प्रेम और आनन्द के स्वरूप है. श्री कृष्ण अवतार के पहले जितने भी अवतार हुये वे सभी भगवान के अंशावतार हुए और भगवान श्री कृष्ण ही पूर्ण अवतार हैं .द्वापरयुग के अंत मे जब धरती पर आसुरी शक्तियों ने मनुष्य रूप में जन्म लेकर पृथ्वी पर हिंसा का खिलवार करने लगे तब देवकी- बसुदेव, नंद-यशोदा को पूर्व काल दिए वरदान को भी पूर्ण करने के लिये भगवान श्रीकृष्ण अपने समस्त अंशो सहित पृथ्वी पर अवतरित हुए. भगवान श्रीकृष्ण के अवतार का प्रयोजन है साधु, वेद, ब्राह्मण, गौ, धर्म, अध्यात्म, संस्कृति की रक्षा कर आसुरी शक्तियों का नाश कर धर्म की स्थापना करना. भगवान श्रीकृष्ण के जीवन से मनुष्य को संघर्ष की शिक्षा मिलती है भगवान श्रीकृष्ण जिस दिन अपने परमधाम से धरती पर अवतरित हुए तब से लेकर पुनः धाम गमन तक पूरे जीवन भर आसुरी शक्तियों से संघर्ष कर उनका अंत किये.
इसलिए मनुष्य को संघर्षो से घबराना नही चाहिये क्योंकि मनुष्य जीवन संघर्ष के लिये ही मिला है. गोविन्द जी महाराज ने कृष्ण शब्द की व्यख्या करते हुए कहा की कृष धातु का अर्थ है सत और इसमें जो ण शब्द है उसका अर्थ है आनंद. सत और आनंद में चित का संयोग नित्य हैं इसलिये कृष्ण नाम सच्चिदानन्द लक्षण युक्त है. इसलिये भगवान के सभी नामो में कृष्ण नाम ही सर्वश्रेष्ठ है इसलिये भगवासगर से पार जाने के लिये बड़े बड़े ऋषि मुनियों ने देवताओं में प्रधान महादेव भी कृष्ण नाम ही जपते है .अतः श्री कृष्ण प्रेम के स्वरूप है जो धर्म की रक्षा और अपने प्रेमियों को प्रेम का दान देने के लिये अवतरित हुए थे . इसलिये तो कहते हैं प्रेम की परिभाषा है श्री कृष्ण, गोपियों के चितचोर है श्री कृष्ण, भक्तों के भगवान है श्री कृष्ण वेदान्तियों के ब्रह्म है श्री कृष्ण ,भक्तों के भगवान है श्री कृष्ण ,सभी तेज राशियों के तेज है श्री कृष्ण, सभी कर्मों के परिसमाप्ति है श्री कृष्ण ,यज्ञ के उद्देश्य है श्री कृष्ण, वेद के रहस्य है श्री कृष्ण. इस अवसर पर पूजा समिति के सभी सदस्य मुना जी श्री राम राय ,जय राम बीरबहादुर उपाध्याय, ओमप्रकाश जी, दिवाकर शास्त्री जी, यज्ञाचार्य श्री हरेराम शास्त्री जी ,यज्ञाधीश श्री रामनारायण दास जी आदि समस्त ग्रामीण जनता उपस्तिथ थे.