कोरोना कहर: परिजनों को अस्थियाँ तक भी नसीब नहीं  तो किस बात का है इंसान को गुरूर !

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सारी जिंदगी डूबे रहे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र होने के गुरूर में, अब महामारी में मान लीजिए, सब हैं एक समान

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✍️ सिवान जिले के आंदर थानाध्यक्ष मनोज कुमार की कलम से ✍️

इस कोरोना महामारी के दौर में श्मशान में जाते ही सारी ऊँच-नीच और छुआछूत मिट गयी है।अस्पतालकर्मी सीधे हॉस्पिटल से श्मशान घाट ले जाकर शव को जला दे रहे हैं।अपने प्रियजन का अंतिम दर्शन करने तक करने का मौक़ा नहीं मिल रहा है। जो लोग ताउम्र ब्राह्मण, वैश्य और क्षत्रिय के जन्म जातीय श्रेष्ठता बोध में जीते रहे। निम्नवर्गीय जातियों को हीन भावना की दृष्टि से देखते रहे। वंचितों, दलितों का सामाजिक तिरस्कार कर उन्हें मिलने वाले अधिकारों का विरोध कर नफ़रत करते रहे। वही एक ओर दलित अपने को उनसे दूर रहकर एक अलग विद्रोह की सोच रख रहें हैं। उन्हीं स्वर्ण को दलितों के साथ अनंत यात्रा करनी पड़ रही है।सभी ताउम्र जातीय सर्वोच्चता के दंभ में गुजरी उनका शरीर श्मशान घाट में कहीं भी फेंक किसी भी कथित किसी समुदाय के साथ किसी के द्वारा जला दिया जा रहा है। परिजनों को अस्थियाँ तक भी नसीब नहीं हो रही।लेकिन इस भीषण महामारी में किसी भी जात वाला ही उनका सारा क्रियाकर्म कर श्रेष्ठता बोध में जीने वालों की माटी समेट रहे है।यह शरीर के साथ साथ उनके जातीय अभिमान का भी माटी हो जाना है।जब संविधान व इंसानियत में यक़ीन रखने वाले न्यायप्रिय लोग सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक, राजनीतिक न्याय और समानता की बात करते है तो यही लोग उन्हें जातिवादी, आरक्षणवादी, मुल्ला, मौलाना इत्यादि पता नहीं क्या क्या बोलते हैं ? सामान्य दिनों में ग़ुरूर में जीने वाले हम इंसान यह नहीं समझते लेकिन महामारी का कठिन दौर बता रहा है कि परवरदिगार के बनाए हम सभी इंसान एक समान एवं एक ही परम पिता की औलाद हैं।हमारा रंग, रूप, नाम, जाति और धर्म अलग-अलग हो सकता है लेकिन हम सभी एक ही पवित्र डोर से बंधे हुए है।

गुरु नानक साहब ने कहा है:

“अव्वल अल्लाह नूर उपाया,कुदरत के सब बन्दे !
एक नूर ते सब जग उपज्या,कौन भले कौन मंदे” !!

इस महामारी ने यही बताया है कि इंसानियत सबसे बड़ा धर्म है और हाड़ मांस से बना इंसान ही सबसे बड़ी जाति है तथा इंसान की सिर्फ 8 उपजातियाँ A,B,O,AB (+,-) है।कबीर साहब ने भी फ़रमाया है कि, “हे इंसान,तू किस चीज का ग़ुरूर करता है एक दिन सब माटी हो जाना है”

इसलिए किसी से जाति-धर्म के आधार पर नफ़रत मत करो।नफ़रत करो तो उसके पाप और गंदे कर्म से।जो तुम्हें जाति-धर्म के नाम पर नफ़रत कराता है।वह मानव जाति का सबसे बड़ा दुश्मन है।जो तुम्हें आपस से नफ़रत कराना सिखा सकता है।वह भविष्य में परिजनों से भी करा देगा।क्योंकि यही उसका पेशा है।जिसे अपने पेशे में बरकत होती है।वो कभी भी अपना पेशा नहीं छोड़ता। इसलिए ऐसे सौदागरों से बचकर रहना चाहिए।