- एनीमिया से बचाव के लिए पौष्टिक आहार का करें सेवन
- एनीमिया की संकेतो की करें पहचान
सिवान:- कोरोनावायरस के संक्रमण से बचने के लिए पूरे देश में लॉक डाउन लागू है। ऐसे में गर्भवती महिलाओं को बेहतर देखभाल की आवश्यकता है। महिलाएं दिनभर काम में इतना व्यस्त रहती हैं कि अपनी सेहत की तरफ ध्यान ही नहीं देती। जागरूकता के अभाव में थकान, सुस्ती, दर्द, सर्दी-जुकाम और बुखार जैसे कुछ लक्षणों की ओर महिलाओं का ध्यान ही नहीं जाता, जो कभी-कभी किसी गंभीर बीमारी का संकेत दे रहे होते हैं। अगर इन संकेतों को समय रहते पहचान लिया जाए तो कई गंभीर बीमारियों से बचा जा सकता है। गर्भवती महिलाओं को बेहतर खान-पान का ध्यान रखना जरूरी है। एनीमिया को नजरअंदाज नहीं करें। इसके लक्षणों व खान-पान की विशेष ध्यान रखना आवश्यक है। सिविल सर्जन डॉ आशेष कुमार ने बताया गर्भावस्था में फल खाना बहुत जरूरी है लेकिन कोई भी फल खाने से पहले ये सुनिश्चिात कर लें कि फल अच्छी तरह से धुले हुए हों। वरना संक्रमण का खतरा हो सकता है।गर्भावस्था के दौरान जंक फूड खाने से परहेज करना ही बेहतर होगा। इसमें उच्च मात्रा में फैट होता है, जिसकी वजह से कोलेस्ट्रॉल बढ़ने का खतरा हो सकता है। गर्भावस्था के दौरान संपूर्ण आहार लेना बहुत जरूरी है। शरीर को सभी पोषक तत्व पर्याप्त मात्रा में मिलने से ही बच्चे का भी सही विकास होगा।फोलिक एसिड की पर्याप्त मात्रा लेना बहुत जरूरी है। हरी पत्तितयों में पाया जाने वाला फोलिक एसिड बच्चे के जन्म से जुड़ी कई परेशानियों से बचाने का काम करता है।
क्या है लक्षण
- थकान महसूस होना
- नाखूनों का पीला पड़ना
- चक्कर आना
- पैरों के तलवों में ठंडापन
- लगातार सिर दर्द रहना
- आंखों के सामने अंधेरा छाना
पौष्टिक आहार का करें सेवन
एनीमिया से बचाव के लिए सेम, मसूर, टोफू, किशमिश, खजूर, अंजीर, खुबानी, छिलका युक्त आलू, ब्रोकली, गांठ गोभी, हरी पत्तेदार सब्जियां, अखरोट-मूंगफली, अंकुरित बीज, गुड़, दलिया का सेवन करें।गाजर, टमाटर, चुकंदर का सलाद एवं केला खाने से भी खून की कमी दूर होती हैं।
क्या है एनिमिया
बच्चों के रक्त में प्रति डेसीलीटर 11 ग्राम से कम हेमोग्लोबिन और महिलाओं के रक्त में प्रति डेसीलीटर 12 ग्राम से कम हेमोग्लोबिन होने की स्थिति को एनिमिया या रक्ताल्पता की स्थिति मानी जाती है।
क्या है आंकड़ा
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ सर्वेक्षण 4 के अनुसार सिवान जिले मे 6 से 59 माह के 63.1 प्रतिशत बच्चे, प्रजनन आयु वर्ग की 60.2 प्रतिशत महिलाएं एवं 67.0 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं एनीमिया से ग्रसित हैं । किशोरावस्था में खून की कमी के कारण मानसिक और शारीरिक विकास बाधित होता है तथा कुपोषण की संभावना बढ़ जाती है। वही किशोरावस्था मे अगर सही पोषण न मिले तो दैनिक कार्य करने कि क्षमता घट जाती है और एकाग्रता मे भी कमी आती है ।