- मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार में समुद्र न होने के चलते कोई बड़ा उद्योग लगाने में असमर्थता व्यक्त करने जैसे हास्यास्पद बयान देकर खुद ही फंसते आ रहे हैं नजर
- कोरोना काल में नौकरी छीने जाने का दर्द व लॉकडाउन में शासकीय मशीनरी के उत्पीड़न के चलते एनडीए गठबंधन के शीर्ष नेताओं की आंखें हो सकती है नम
- हजारों किलोमीटर का सफर पैदल चल कर तय करने वाली उन तस्वीरों को याद कर मतदाताओं की मन आज भी सिहर उठ रहा है।
- बीसवीं सदी के आखिरी दशक में जब पूरे देश में भगवा आंदोलन का उभार था, उस समय बिहार में ही भगवा रथ का पहिया राजद सुप्रीमो श्री लालू प्रसाद यादव द्वारा रोक दिया गया था।
- भारत के प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न डॉ राजेंद्र प्रसाद की धरती सीवान में सामाजिक, राजनीतिक प्रकृति बिल्कुल अलग है। यहां के लोग हमेशा गंगा जमुनी एकता का मिसाल कायम रखा है।
परवेज़ अख्तर/सिवान:
सिवान में विधान सभा चुनाव अब दूसरे चरण के मतदान की तरफ अपना रुख अख्तियार कर लिया है।यहां एनडीए गठबंधन व महागठबंधन के बीच छिड़े चुनावी संग्राम में फायर ब्रांड नेताओं के दौरे व उनकी जुबानी जंग से गुलाबी ठंड में भी एक गर्मी का एहसास होने लगा है। यहां प्रकाश डालते हैं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ महाराज के सभाओं की। उत्तर प्रदेश से सटे बिहार के सीमावर्ती जिला सीवान की। यहां एक दिन के अंतर में योगी आदित्यनाथ महाराज एनडीए गठबंधन प्रत्याशियों के पक्ष में चुनावी सभाओं को संबोधित किया। आयोजित सभाओं में राम मंदिर निर्माण व जम्मू कश्मीर में धारा 370 हटाने,तीन तलाक जैसे मुद्दों पर चर्चा करते हुए विजय की वीर गाथा के रूप में इसे उनके द्वारा सुनाया गया। गुजरात के बाद भगवा एजेंडे की प्रयोग स्थली बने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ महाराज को बिहार विधानसभा चुनाव में पार्टी नेतृत्व फायर ब्रांड नेताओं के रूप में प्रस्तुत कर रहा है।
इनकी सिवान में करीब 2 सभाओं का चुनावी इंपैक्ट के लिहाज से विश्लेषण करें तो बेरोजगारों व कामगारों के सवाल के आगे उनका कोई असर नहीं दिख रहा है। यहां भगवा एजेंडे पर चर्चा करने के पहले मौजूदा चुनाव में प्रमुखता से उठ रहे मुद्दों व बिहार की सामाजिक व राजनीतिक प्रकृति को भी समझना जरूरी है।लंबे समय से भूमि सुधार आंदोलन का केंद्र रहे बिहार में बड़ी संख्या में खेतिहर मजदूरों, कामगारों की तादाद है, जो रोजगार की तलाश में महानगरों व कृषि संबंधी कार्यों के लिए पंजाब व हरियाणा जाते हैं। इसके अलावा पढ़े-लिखे नौजवानों को यहां से रोजगार की तलाश में राज्य से पलायन करना पड़ता है। ऐसे में कह सकते हैं कि सबसे अधिक मजदूर व बेरोजगार नौजवान बिहार से देश के विभिन्न कोनों में काम की तलाश में जाते हैं। कोरोना काल में नौकरी छीने जाने का दर्द व लॉकडाउन में शासकीय मशीनरी के उत्पीड़न के चलते दोहरी मार उन्हें झेलना पड़ा था।
हजारों किलोमीटर का सफर पैदल चल कर तय करने वाली उन तस्वीरों को याद कर मन आज भी सिहर जाता है। कोरोना काल के सर्वाधिक प्रभावित राज्य में यह चुनाव चल रहा है। ऐसे में रोजगार का सवाल मुद्दा बनना लाजिम है। इसे और रफ्तार दिया है दस लाख युवाओं को रोजगार देने का वादा कर महागठबंधन के नेता तेजस्वी यादव ने। अब इसी एजेंडे पर महागठबंधन चुनाव लड़ रहा है। इस मुद्दे के प्रसार और गहराई का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बीजेपी और उसके स्थापित नेता चाहकर भी सांप्रदायिकता से जुड़े मुद्दों को नहीं उठा पा रहे हैं। आलम यह है कि पाकिस्तान और मुसलमान से कम बात नहीं करने वाले भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज नेता गिरिराज सिंह तक को रोजगार पर बोलना पड़ रहा है। यह बात अलग है कि वह बेतुकी बातें बोल रहे हैं।
लेकिन वह बोल वही रहे हैं। इन विपरीत परिस्थितियों में भी योगी अपना पुराना राग छोड़ने के लिए तैयार नहीं है। इसके पीछे दो बातें हो सकती हैं।एक यह कि इसके अलावा योगी कुछ और बोल ही नहीं सकते। क्योंकि जीवन भर गोरखनाथ में घंटी बजाने वाले इस कथित योगी को उसके अलावा कुछ आता भी नहीं है। या फिर पार्टी ने रणनीति के तहत उन्हें यूपी की सीमा से जुड़े इलाकों में अपने सांप्रदायिक एजेंडे के प्रचार-प्रसार की छूट दे रखी है। जिसमें उसको कुछ ध्रुवीकरण हो जाने की उम्मीद है। लेकिन अभी तक इन इलाकों से आयी सर्वेक्षण पर अगर भरोसा करें तो ऐसा कुछ होता नहीं दिख रहा है।और लोगों ने भी तेजस्वी के वादों की डोर में अपनी उम्मीदों का कांटा फंसा दिया है। ऐसे में सांप्रदायिकता के इस विष के खरीदार बहुत कम हैं। फिर भी योगी हैं कि मान ही नहीं रहे हैं। शायद योगी अतीत भूल गए। या फिर उसे याद नहीं रखना चाहते हैं। सच यह है कि भारत के प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न डॉ राजेंद्र प्रसाद की धरती सीवान में सामाजिक, राजनीतिक प्रकृति बिल्कुल अलग है।
यहां के लोग हमेशा गंगा जमुनी एकता का मिसाल कायम रखा है।विपरीत हालात से लड़ना व परिवर्तन के लिए आवाज बुलंद करना यहां के लोगों की रगों में समाया हुआ है। भगवा एजेंडे की बात की जाए और उस कड़ी में यहां के अतीत के पन्नों को पलटा जाए तो बीसवीं सदी के आखिरी दशक में जब पूरे देश में भगवा आंदोलन का उभार था, उस समय बिहार में ही भगवा रथ का पहिया राजद सुप्रीमो श्री लालू प्रसाद यादव द्वारा रोक दिया गया था। ऐसे में कहा जा सकता है कि बिहार में कभी भी धार्मिक कट्टरता को जगह नहीं मिल पायी। इसलिए ही यूपी से बिहार में प्रवेश करते ही भगवा का रंग फीका पड़ने लगता है।
अंत में यह कह सकते हैं कि बिहार की तासीर को भारतीय जनता पार्टी व उसका भगवा ब्रिगेड समझ नहीं पा रहा है। चुनाव के प्रमुख मुद्दा बन चुके रोजगार के सवाल को समझने में शुरुआती गलती कर चुके एनडीए के लिए अब संभलना मुश्किल हो रहा है। हालांकि महागठबंधन के दस लाख युवाओं को रोजगार देने के वादे से आगे निकलने की कोशिश भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में 19 लाख लोगों को काम देने का वादा कर की है। लेकिन एनडीए के प्रमुख घटक जदयू नेता व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार में समुद्र न होने के चलते कोई बड़ा उद्योग लगाने में असमर्थता व्यक्त करने जैसे हास्यास्पद बयान देकर खुद ही फंसते नजर आ रहे हैं।