गोपालगंज: दलित ओबीसी जनजागरण संघ की ओर से हथुआ में बिरसा मुंडा की जयंती मनाई गई। इस मौके पर संघ के संयोजक संजय स्वदेश ने कहा कि भारतीय इतिहास में बिरसा मुंडा एक ऐसे लोकनायक थे जिन्होंने तत्कालीन बिहार में अपने क्रांतिकारी चिंतन से उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में आदिवासी समाज की दशा और दिशा बदलकर नवीन सामाजिक और राजनीतिक युग का सूत्रपात किया। काले कानूनों को चुनौती देकर बर्बर ब्रिटिश साम्राज्य को चुनौती ही नहीं दी बल्कि उसे सांसत में डाल दिया। उन्होंने आदिवासी लोगों को अपने मूल पारंपरिक आदिवासी धार्मिक व्यवस्था, संस्कृति एवं परम्परा को जीवंत रखने की प्रेरणा दी। संजय ने कहा कि आज आदिवासी समाज का जो अस्तित्व एवं अस्मिता बची हुई है तो उनमें उनका ही योगदान है। आज के झारखंड के आदिवासी दम्पति सुगना और करमी के घर 15 नवंबर 1875 को रांची जिले के उलिहतु गाँव में बिरसा मुंडा का जन्म हुआ था।
संजय ने कहा कि बिरसा मुंडा ने हिन्दू धर्म और ईसाई धर्म का बारीकी से अध्ययन किया तथा इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि आदिवासी समाज मिशनरियों से तो भ्रमित है ही हिन्दू धर्म को भी ठीक से न तो समझ पा रहा है, न ग्रहण कर पा रहा है। बिरसा के जीवन में एक नया मोड़ आया। यह कहा जाता है कि 1895 में कुछ ऐसी आलौकिक घटनाएँ घटीं, जिनके कारण लोग बिरसा को भगवान का अवतार मानने लगे। लोगों में यह विश्वास दृढ़ हो गया कि बिरसा के स्पर्श मात्र से ही रोग दूर हो जाते हैं। इस मौके पर सामाजिक कार्यकर्ता दिलशाद खान ने कहा कि बिरसा मुंडा ने किसानों का शोषण करने वाले जमींदारों के विरुद्ध संघर्ष की प्रेरणा भी लोगों को दी। उनका संघर्ष एक ऐसी व्यवस्था से था, जो किसानी समाज के मूल्यों और नैतिकताओं का विरोधी था। जयंती कार्यक्रम के मौके पर संजय स्वदेश, दिलशाद खान, मृत्युंजय, इंद्रजीत, शशिभूषण, गोविंद, शंभु गुप्ता समेत अनेक लोग उपस्थित थे।