परवेज अख्तर/सिवान: गुठनी यज्ञ करना, कराना, यज्ञ में सहयोग करना यह मानव मात्र का धर्म है। व्यक्ति चाहे या न चाहे यज्ञ तो सभी लोग करते ही हैं। यह बातें प्रखंड के दमोदरा गांव में चल रहे शिव सहित श्रीराम दरबार प्राण प्रतिष्ठात्मक महायज्ञ के दूसरे दिन गुरुवार को अयोध्या से पधारे संत आचार्य किशोरी शरण महाराज ने कही। उन्होंने कहा कि यज्ञ अर्थात यजन होता है। भगवान के यजन को ही यज्ञ कहते हैं। मानव जीवन के सभी आवश्यकताओं को प्रकृति द्वारा पूर्ण किया जाता है। यज्ञ से देवता प्रसन्न होते हैं, देवताओं को भोजन मिलता है। देवता प्रसन्न होकर पृथ्वी पर वृष्टि करते हैं, वृष्टि से भूमि पर फसल उगती है और फसलों से प्राप्त भोजन से मानव जीवन का भरण पोषण होता है।
साथ ही हमलोग जाने अनजाने में नित्य यज्ञ करते ही हैं, पहले के समय में पंच यज्ञ नित्य किया जाता था। अब भी जो यज्ञ हम सब लोगों द्वारा किया जाता है। उन्होंने कहा कि सबसे पहले सबके घर में अतिथि आते हैं, उन्हें जलपान भोजन कराना भी यज्ञ है, जो सभी करते हैं। करीब सबके यहां गाय इत्यादि है जिसे नित्य भोजन के पूर्व गाय को रोटी खिलाते हैं वे भी यज्ञ करते हैं। चींटी, कुत्ते को भोजन देना भी यज्ञ है। इस मौके पर आनंद तिवारी, रमेश तिवारी, मनोज तिवारी, आचार्य भास्कर नाथ तिवारी, अमित नाथ तिवारी, नितेश नाथ तिवारी, राघव पांडेय, प्रकाश झा, अखिलेश जी, हरेकृष्ण नाथ तिवारी, विद्यासागर तिवारी समेत काफी संख्या में लोग उपस्थित थे।