परवेज अख्तर,सीवान-: सुप्रीम कोर्ट में राज्य के लगभग 3.69 लाख नियोजित शिक्षकों को समान काम समान वेतन देने के मामले में गुरुवार को ऐतिहासिक सुनवाई हुई। कोर्ट ने उच्च न्यायालय पटना के न्यायादेश को अक्षुण्ण रखा है। सुनवाई में बिहार सरकार की तरफ से पेश की गई रिपार्ट पर कड़ी नाराजगी जताई गई। माननीय न्यायाधीश ने फटकार लगाते हुए सरकार से तलब किया कि चपरासी का वेतन 36 हजार व शिक्षक का वेतन 26 हजार क्यों है। जबकि शिक्षक बच्चों का भविष्य तय करते हैं। इस मुद्दे पर तल्ख टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने आदेश दिया कि बगैर किसी समझौते के समान काम के लिए समान वेतन देना सुनिश्चित करें। साथ ही शिक्षकों को 52 हजार करोड़ रूपये का एरियर कहां से और कैसे दिया जायेगा। इस मामले में केंद्र सरकार और राज्य सरकार दोनों संयुक्त रुप से निर्णय कर होने वाली अगली तारीख 27 मार्च को तथ्यात्मक रिपोर्ट प्रस्तुत करें। अन्यथा 50:50 के अनुपात में दोनों को राशि वहन करना पड़ेगा। बता दें कि माननीय उच्च न्यायालय, पटना ने 8 दिसंबर 2009 से नियोजित शिक्षकों को एरियर आदि देने का आदेश पारित किया है।
परिवर्तनकारी प्रारंभिक शिक्षक संघ की प्रदेश उपाध्यक्षा पूनम कुमारी ने बताया कि न्यायालय का आदेश सर्वोपरि है। बिहार के तमाम नियोजित शिक्षकों को न्यायालय के सर्वोच्च मंदिर से न्याय मिलने की सौ फीसदी उम्मीदें थीं और आगे भी बनी रहेगी। माननीय मुख्यमंत्री ने अपनी हठधर्मिता के कारण शिक्षकों की उम्मीदों, अस्मिता व सम्मान को रौंदने का घिनौना कार्य किया है। संवैधानिक जीत की उम्मीद से शिक्षकों का चेहरा खिल उठा है। उन्होंने बिहार सरकार को चेताते हुए कहा कि अभी भी वक्त है सरकार घोड़े के घमंड से नीचे उतर कर 27 मार्च के पूर्व माननीय उच्च न्यायालय, पटना के न्यायादेश को अक्षरत: पालन कर शिक्षकों का सम्मान करें। अन्यथा कोर्ट के फैसले की चोट से बचना नामुमकिन है। उन्होंने कहा कि अररिया, जहानाबाद और भभूआ का चुनाव परिणाम तो ट्रेलर था । 2019 के चुनाव परिणाम की पूरी फिल्म तो अभी बाकी है।