- वेबिनार के माध्यम से धर्मगुरुओं ने लोगों से की अपील
- बिहार राज्य आपदा प्रबंध प्राधिकरण ने आपदा से निपटने पर की चर्चा
- बाढ़ और आपदा से निपटने में सहयोग करने की कही गयी बात
- हजी सनाउल्लाह प्रमुख ईदारे शरिया एवं ब्रह्मकुमारी वी. के. ज्योती ने भी दिए संदेश
पटना: बिहार राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, यूनिसेफ और बीआईएफसी (बिहार इंटर फेथ फोरम फॉर चिल्ड्रेन) ने बिहार में बाढ़ और आपदा से निपटने में धर्मगुरुओ की भूमिका पर एक वेबिनार का आयोजन किया. बाढ़ और आपदा के दौरान ख़ासतौर से बच्चों एवं महिलाओ तक जानकारी और मदद पहुँचाने की जरूरत पर बल दिया गया.
वेबिनार की शुरुआत में यूनिसेफ की संचार विशेषज्ञ निपुण गुप्ता ने बीआईएफसी के बारे में संक्षिप्त रूप से बताते हुए कहा कि बीआईएफसी सिर्फ बिहार ही नहीं बल्कि देश का एक अनूठा मंच है जहाँ सभी धर्मों के प्रतिनिधि एक साथ बच्चों और महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए कार्यरत हैं और जागरूकता फैलाते हैं। आगे उन्होंने कहा कि “बीआईएफसी के चार सिद्धांत है – स्वैच्छिक मंच, सर्व धर्म सम-भाव धर्मगुरुओं के द्वारा नेतृत्व, अधिकार आधारित कार्यशैली और वंचित समाज का उत्थान।
धर्मों के प्रतिनिधि लोगों को जागरूक करने में करें मदद
बिहार राज्य आपदा प्रबंध प्राधिकरण के उपाध्यक्ष व्यास जी ने वेबिनार को संबोधित करते हुए एक उदाहरण दिया कि जिस प्रकार मोतिहारी जिले के गांवों में गर्मी के मौसम में मंदिर और मस्जिद से लोगों से अपील की जाती हैं कि रात के आठ बजे तक खाना बना लें, रात में दिया जलाकर न सोएं आदि। जन जागरुकता फैलाने में धर्मगुरुओं का योगदान महत्वपूर्ण होता है। इसी प्रकार इस समय हम सभी कोरोना वायरस महामारी से जूझ रहे हैं। इसके बारे में सभी धर्मों के प्रतिनिधि लोगों को जागरूक करने में मदद करे।
महामारी में सतर्कता जरुरी
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, नई दिल्ली के पूर्व सदस्य मुज़्फ्फर अहमद ने कहा कि पोलियो के भारत से उन्मूलन में धर्मगुरुओं ने अहम भूमिका निभाई थी। आपदा से कम से जान – माल की क्षति हो इसके लिए धर्मगुरु आपदा पूर्व तैयारियों के लिए जरूर अपील करें। इस कोरोना वायरस महामारी में लोगों से अपील करें कि मास्क का उपयोग करें और शारीरिक दूरी बनाएं रखें।क्योंकि लोग न सिर्फ इनकी बातों को सुनते हैं बल्कि उसका पालन भी करते हैं।
इन्सान की मदद करना हमारा फर्ज़ है
इदारे शरिया के हाजी सनाउल्लाह ने कहा कि “बिहार का एक हिस्सा बाढ़ग्रस्त होता है और दूसरा सूखाग्रस्त”। इस वर्ष भी राज्य का एक बड़ा क्षेत्र बाढ़ से ग्रसित है राहत पहुंचाने में हम धर्म के आधार पर किसी के साथ भेदभाव नहीं करते हैं। हम सभी इंसान हैं और इंसानियत को आगे ले जाना ही हमारा कर्तव्य है। उन्होंने अपील करते हुए कहा ‘‘आप अपने ज़ानिब से जो मदद होती है वह करें. वहां न देखें कि हिन्दु मुस्लिम ईसाई कौन है. इन्सान हैं,.इन्सान की औलाद हैं और इन्सान की मदद करना हमारा फर्ज़ है’’.
आपदा का असर बच्चों के मन मस्तिष्क पर भी पड़ता है
ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय पटना की बी के ज्योति ने कहा “धर्मगुरुओं का कार्य केवल धार्मिक प्रचार प्रसार तक सिमित न रहे। उन्हें समाज में जागरूकता फैलानी चाहिए व समाज के कमज़ोर तत्वों के उत्थान हेतु कार्यों में मदद करनी चाहिए।” आपदा के समय इनकी भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। आपदा का असर बच्चों के मन मस्तिष्क पर भी पड़ता है। उन्हें उनकी मनःस्थिति से निकाल उम्मीद जगाना बहुत महत्वपूर्ण है। इससे उन्हें अपनी जिंदगी फिर से शुरू करने में मदद मिलेगा. इससे पूर्व सब धर्म गुरु अलग-अलग थे मगर इस मंच से ( बिहार इंटर-फेथ फोरम फॉर चिल्ड्रेन) साथ आ गये हैं.
जमात इस्लामी ए हिंद के मोहम्मद शहजाद ने कहा कि “बाढ़ प्रभावित इलाकों में हमारी संस्था लोगों तक राशन किट, दवा, मच्छरदानी और दूसरी जरूरी वस्तुएं पहुंचा रही है।”
आपदा के प्रभाव को कम किया जा सकता है
यूनिसेफ के आपदा प्रबंधन विशेषज्ञ बंकू बिहारी सरकार ने कहा कि “प्राकृतिक आपदाओं से हम जीत नहीं सकते। हम बस इसके प्रभावों को कम कर सकते हैं। इसके लिए हमें आपदा पूर्व तैयारियां करनी चाहिए।”
बिहार राज्य आपदा प्रबंध प्राधिकरण के डॉ पल्लव ने “बाढ़ के दौरान बच्चों की शिक्षा, सुरक्षित शनिवार” पर एक प्रस्तुतिकरण दी। उन्होंने कहा कि सुरक्षित शनिवार का उद्देश्य बच्चों में आपदा प्रबंधन की संस्कृति विकसित करना है। बच्चों के बीच मॉक ड्रिल का आयोजन किया जाता है जिससे आपदा से लड़ने के लिए उनका कौशल विकसित होता है।
यूनिसेफ के आपदा प्रबंधन सलाहकार घनश्याम मिश्र ने “आपदा में बाल सुरक्षा” पर प्रस्तुतीकरण देते हुए कहा कि “आपदा के समय लोग दिनचर्या में इतना व्यस्त हो जाते हैं कि बच्चे उपेक्षित हो जाते हैं। और इसका फायदा असामाजिक तत्व उठाते है। इसलिए राहत शिविरों में बच्चों का पंजीकरण किया जाना चाहिए जिससे कि बच्चों की रक्षा की जा सके। आगे उन्होंने बाढ़ के तात्कालिक प्रभाव जैसे कचरा, गंदगी, बीमारी आदि का जिक्र किया। उन्होंने साफ पानी और इसकी गुणवत्ता जांच करने के तरीकों की जानकारी भी साझा की।
“मॉनसून के दौरान डूबने से होने वाली मौत” विषय पर प्रस्तुतिकरण देते हुए बिहार राज्य आपदा प्रबंध प्राधिकरण के डॉ जीवन ने कहा कि 2016 में राज्य भर में आपदा से 254 मौतें हुई थी जिनमें से 251 लोगों की मौत पानी में डूबकर हुई थी। नाव से यात्रा करते समय इस बात का हमेशा ध्यान रखें कि नाव पंजीकृत हो, नाव ओवरलोडेड न हो और न ही उस पर कोई जानवार सवार हो। यदि बारिश हो रही हो तो नाव की यात्रा न करें।
वज्रपात पर प्रस्तुतिकरण देते हुए बिहार राज्य आपदा प्रबंधत प्राधिकरण की डॉ मधुबाला ने कहा कि “इस वर्ष राज्य में वज्रपात से अभी तक 400 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। लोग इस बात का ध्यान रखे कि बारिश में बिजली के खंभे के पास खड़े न हो, लोहे की डंडी वाले छाता का उपयोग न करें। यदि संभव हो तो किसी घर में शरण लें या पैर के नीचे बोरा रखें और कानों पर हाथ रख नीचे बैठ जाएं।”
राज्य आपदा अनुक्रिया बल के सेकेंड इन कमांड श्री के के झा ने “सर्प दंश प्रबंधन” पर प्रस्तुति देते हुए कहा कि भारत में हर साल लगभग 45,000 लोगों की मौत सर्प दंश के कारण होती है। इसमें से 50 फीसदी मौतें जहर नहीं बल्कि घबराहट की वजह से होती है। सांप काटने की दशा में पहले यह पहचान करना चाहिए कि सांप जहरीला है या नहीं। यह जानने का तरीका सर्प दांत के निशानों की संख्या है। यदि दांत के निशान दो है तभी सांप जहरीला है.
इस वेबिनार में सेवा केंद्र के फादर अमल राज, गायत्रीपीठ से नीलम सिन्हा और चंद्र भूषण, शिरोमणि गुरूद्वारा प्रबंधक कमिटी के दलजीत सिंह तथा अनिसुर रहमान ने भी हिस्सा लिया। कार्यक्रम का संचालन बिहार राज्य आपदा प्रबंध प्राधिकरण की डॉ मधुबाला ने किया। यूनिसेफ की संचार विशेषज्ञ निपुण गुप्ता ने धन्यवाद ज्ञापन किया
इस वेबिनार में कुल 98 लोगों ने भाग लिया जिसमें, बीआईएफसी से जुड़े धर्मगुरु आध्यात्मिक और धार्मिक संगठनो के कार्यकर्ता , बिहार राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण और यूनिसेफ़ , विकसार्थ शामिल थे