परिवार के बीच की पुरानी तस्वीरों, समाजिक मनोरंजक फिल्में व टूर वाले वीडियो सकारात्मक माहौल बनाने में मददगार
परवेज अख्तर/सिवान: कोरोना काल में सकरात्मक माहौल बनाने की जरूरत आन पड़ी है. क्योंकि सकरात्मक माहौल से नकरात्मक सोच पर विराम लगेगा. जीरादेई के बीरेन्द्र तिवारी विगत सात दिनों से बहुत ही परेशान थे. इसकी वजह कोरोना संक्रमण को लेकर लगातार आ रही भयानक तस्वीरें व खबरें थी. इससे परिवार में डर का माहौल बन गया था. बीरेन्द्र ने पत्नी और बच्चों के साथ अपनी शादी की वीडियो, मनोरंजक फिल्में व टूर पर शूट की गई तस्वीरों और वीडियो क्लिप को देखना शुरू किया. अब वे पहले जैसा ही सुकून महसूस कर रहे हैं. वही राधेश्याम दुबे मां वैष्णव देवी व दार्जलिंग की ट्रिप वाले सुनहरे लम्हों को याद कर खुद को सकारात्मक माहौल देने की कोशिश में जुटे हैं. यह दो पहलू इस बात को समझाने के लिए काफी हैं कि इस वक्त संक्रमण से लड़ने के लिए दवाओं की तरह सकारात्मक सोच की भी जरूरत है. कुछ ऐसा ही सलाह मनोविज्ञानी और समाजशास्त्री भी दे रहे हैं.
एमएनसी में काम करने वाले मनोज कुमार गिरि का मानना है कि परिवार हो या समाज, मौजूदा समय में ज्यादा से ज्यादा सकारात्मक विषयों पर चर्चा की जानी चाहिए. मनोरंजन, फिटनेस, योग व ध्यान केंद्रित करने पर समय देने की जरूरत है. इससे सकारात्मक मनोभाव उतपन्न होगा. यह सकरात्मक सोच इम्यूनिटी कैपिसिटी बढ़ाने में बेहद कारगर साबित होगा. मनोविज्ञानी प्रो निधि ने बताया कि पॉजिटिव सोच का सीधा संबंध प्रतिरक्षा प्रणाली से है. सोच जितनी सकारात्मक होगी, आत्मबल उतना ही मजबूत होगा और प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी. भय व तनाव प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर करता है. मौजूदा दौर में नकारात्मक सूचनाओं से ध्यान हटाने की जरूरत है.
समाजशास्त्री प्रो मनोज कुमार सिंह की माने तो मौजूदा समय में सोशल मीडिया का उपयोग संदेश ग्रहण करने तक ही सीमित करने की जरूरत है. परिवार में बातचीत बढ़ाएं, मनोरंजन वाले टीवी चैनल देखें. इससे मनोबल बढ़ेगा. हमें घर के अलावा समाज में भी जानबूझकर सकारात्मक सोच वाले विषयों पर चर्चा करनी चाहिए. जिससे सामाजिक ताना-बाना भी सकारात्मक ही रहे. समाज में अच्छा संदेश रहेगा तो हर कोई उसे ग्रहण कर लेगा. अगर कोई कोरोना संक्रमित है तो उसे ऐसे उदाहरण बताएं जिससे उसका हौसला बढ़े.