परवेज अख्तर/सीवान : वासंतिक नवरात्र के छठवें दिन सोमवार को देवी जगदंबा के छठवें स्वरूप मां कात्यायनी की पूजा की गई। इस मौके पर अल सुबह श्रद्धालुओं ने अपने घरों में हीं पूजन सामग्री के साथ मां की आराधना की। इस दौरान या देवी सर्वभुतेषू… के उद्घोष से वातावरण भक्तिमय हो गया। पूजा स्थलों पर श्रद्धालुओं द्वारा दुर्गा सप्तशती किया गया। आचार्य पंडित उमाशंकर पांडेय नें बताया कि मंगलवार को मां के सप्तम स्वरूप की पूजा की जाएगी। मां कालरात्रि को यंत्र, मंत्र और तंत्र की देवी कहा जाता है। पुराणों में निहित जानकारी के अनुसार देवी दुर्गा ने असुर रक्तबीज का वध करने केलिए कालरात्रि को अपने तेज से उत्पन्न किया था। इनकी उपासना से प्राणी सर्वथा भय मुक्त हो जाता है तथा दानव, भूत, प्रेत, पिशाच आदि इनके नाम लेने मात्र से भाग जाते हैं। मां कालरात्रि का स्वरूप काला है, लेकिन यह सदैव शुभ फल देने वाली हैं। इसी कारण इनका एक नाम शुभकारी भी है। आचार्य नें बताया कि मां कालरात्रि की पूजा सुबह चार से 6 बजे तक करनी चाहिए। मां की पूजा के लिए लाल रंग के कपड़े पहनने चाहिए। सप्तमी की रात्रि तिल या सरसों के तेल की अखंड ज्योति जलाना चाहिए। सिद्धकुंजिका स्तोत्र, अर्गला स्तोत्रम, काली चालीसा, काली पुराण का पाठ करना चाहिए। साथ ही साथ संपूर्ण दुर्गा सप्तशती का पाठ करनें से देवी मंगल प्रदान करती है।
ऐसा है मां का स्वरूप
मां के शरीर का रंग काला है। मां कालरात्रि के गले में नरमुंड की माला है। कालरात्रि के तीन नेत्र हैं और उनके केश खुले हुए हैं। मां गर्दभ (गधा) की सवारी करती हैं। मां के चार हाथ हैं। एक हाथ में कटार और एक हाथ में लोहे का कांटा सुशोभित है।
इस मंत्र से करें मां कालरात्रि का जाप
ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तु ते।।
जय त्वं देवि चामुण्डे जय भूतार्तिहारिणि।
जय सर्वगते देवि कालरात्रि नमोस्तु ते।।
2. धां धीं धूं धूर्जटे: पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी,
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु।।
कालरात्रि की पूजा करने व उपरोक्त मंत्र से जाप करने से मृत्यु का भय
नहीं सताता है।