सिवान में चौथे दिन हुई मां कूष्मांडा की पूजा, रविवार को होगी स्कंदमाता की आराधना

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✍️परवेज़ अख्तर/एडिटर इन चीफ:
हिंदू धर्म में आदिशक्ति मां दुर्गा के भक्तों के लिए खास होता है। नवरात्रि के पावन दिनों में मां दुर्गा के नौ अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है। नवरात्र के चौथे दिन शनिवार को जिला मुख्यालय समेत ग्रामीण क्षेत्रों में देवी मंदिरों सहित घरोंं में मां कूष्मांडा की पूजा अर्चना की गई। इस दौरान ओम जय अम्बे गौरी,मैया जय श्यामा गौरी..की गूंज से वातावरण भक्तिमय हो उठा।अल सुबह से ही कचहरी दुर्गा मंदिर, संतोषी माता मंदिर, सुदर्शन चौक स्थित दुर्गा मंदिर, डीएवी मोड़ स्थित दुर्गा मंदिर, फतेहपुर स्थित दुर्गा मंदिर, गांधी मैदान स्थित बुढ़िया माई मंदिर सहित अन्य मंदिरों में पूजा अर्चना को लेकर श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी रही। शाम में मंदिरों में महाआरती की गई।आचार्य पंडित उमाशंकर पांडेय ने बताया कि पांचवें दिन रविवार को मां दुर्गा की पांचवीं शक्ति स्कंदमाता की आराधना होगी। भगवान स्कंद की माता होने होने के कारण मां दुर्गा की इस पांचवीं शक्ति को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है।भगवान स्कंद बालरूप में माता की गोद में विराजमान हैं। माता ने अपनी चार भुजाओं में से दाहिनी उपरी भुजा ने भगवान स्कंद को गोद में पकड़े हुए हैं। माना जाता है इनके आशीर्वाद से संतान का सुख मिलने के साथ ही दुखों से मुक्ति भी मिलती है। मां स्कंदमाता की उपासना से परम शांति और सुख का अनुभव होता है। मां स्कंदमाता को श्वेत रंग प्रिय है। मां की उपासना में श्वेत रंग के वस्त्रों का प्रयोग करना चाहिए। मां की पूजा के समय पीले रंग के वस्त्र धारण करें।

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ऐसा हैं मां स्कंदमाता का स्वरूप :

स्कंदमाता कमल के आसन पर विराजमान हैं, यही कारण कि मां को पद्मासना देवी भी कहा जाता है। मां स्कंदमाता को पार्वती एवं उमा नाम से भी जानते हैं। मां की उपासना से संतान की प्राप्ति होने की मान्यता है। मां का वाहन सिंह है। मां स्कंदमाता सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी हैं।

मां काे केले का लगाएं भोग :

मां को केले का भोग अति प्रिय है। मां को खीर का प्रसाद भी अर्पित करना शुभ होता है। मान्यता है कि ऐसा करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है। मां को विद्यावाहिनी दुर्गा देवी भी कहा जाता है। मां की उपासना से अलौकिक तेज की प्राप्ति होती है।

इस मंत्र का करें जाप :

या देवी सर्वभूतेषु मां स्कंदमाता रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।