✍️परवेज़ अख्तर/एडिटर इन चीफ:
महाराजगंज अनुमडंल मुख्यालय से 3 किलोमीटर दूर भीखाबाध स्थित एतिहासिक भईया-बहनी का मंदिर भाई-बहन के अटूट प्रेम एवं विश्वास का प्रतीक बना हुआ है. यहां दो वट वृक्ष चार बीघा में फैले हुए हैं. दोनों वट वृक्ष ऐसे हैं, जैसे एक दूसरे से लिपट कर एक दूसरे की रक्षा कर रहे हैं. सावन पूर्णिमा के एक दिन पहले इनकी पूजा अर्चना की जाती है. खासकर स्वर्णकार एवं कुम्हार जाति के लोग इसकी पूजा धूमधाम से करते हैं.प्रत्येक साल की भांति इस वर्ष भी बुधवार को यहां पूजा अर्चना के लिए लोगों की भीड़ लगी रही. श्रद्धालुओं ने श्रद्धा भाव से पूजा की तथा मन्नतें मांगी.इस मंदिर की ऐतिहासिकता के बारे में बताया जाता है कि मुगल काल में भभुआ से एक भाई अपनी बहन को रक्षाबंधन के दिन घर ले आ रहा था. इसी क्रम में दरौंदा थाना क्षेत्र के भीखाबाध गाव के समीप गस्त कर रहे सिपाहियों ने बहन के साथ दुर्व्यवहार का प्रयास करने लगे. भाई ने विरोध किया.
अधिक संख्या में सिपाही होने के कारण भाई एवं बहन अपने आप को असहाय महसूस करने लगे. बहन ने भगवान से अपनी इज्जत बचाने की प्रार्थना की. इसपर अचनाक धरती फ टी तथा बहन एवं भाई उसी में समा गए. डोली ढो रहे कुम्हारों ने भी बगल में स्थित एक कुएं में कूद कर जान दे दी. कुछ दिनों बाद उसी जगह दो बट वृक्ष उगे. देखते ही देखते कुछ ही वर्षो में कई बीघा में वट वृक्ष फैल गए.
वे एक दूसरे को ऐसे दिखाई पड़ते हैं, जैसे भाई – बहन एक दूसरे का रक्षा कर रहे है.इस रास्ते से होकर जाने वाले हर लोगों की निगाह इस बट वृक्ष पर बरबस नजर पड़ जाती है. धीरे-धीरे इस लोग इनकी पूजा अर्चना भी करने लगे. ग्रामीणों के सहयोग से यहा भाई बहन के पिंड के रूप में मंदिर का निर्माण किया गया. इस स्थल पर प्रत्येक वर्ष रक्षाबंधन के एक दिन पूर्व पूजा अर्चना धूमधाम से होती आ रही है.