- बिहार कृषि विश्वविद्यालय , सबौर के तत्वावधान में वेबिनार सह पोषण कार्यशाला का हुआ आयोजन
- पोषण में कृषि विज्ञानं केन्द्रों की सहभागिता पर हुई चर्चा
- पोषण वाटिका विषय पर आंगनवाड़ी सेविकाओं को दिया गया प्रशिक्षण
छपरा: सितंबर माह को पोषण माह के रूप में मनाया जा रहा है. कृषि को पोषण से जोड़ने के लिए केंद्र एवं राज्य सरकार प्रयासरत है. कृषि उत्पादों में पोषक तत्वों को समाहित करने के विषय पर किये जा रहे कार्यों एवं पोषण वाटिका के महत्त्व को समझते हुए कृषि पोषण एवं पोषण वाटिका पर सविकाओं के लिए प्रशिक्षण कार्यशाला का बिहार कृषि विश्वविद्यालय , सबौर के तत्वावधान में वेबिनार के माध्यम से शुभारंभ किया गया.
पोषण है स्वस्थ जीवन की कुंजी
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि एवं समाज कल्याण मंत्री, बिहार सरकार राम सेवक सिंह ने कहा “पोषण ही स्वस्थ जीवन की कुंजी है. कृषकों द्वारा अपने उपज में पोषणयुक्त बीज का उपयोग कर कृषि उत्पादों में पोषक तत्वों को समाहित किया जा सकता है. कृषि विज्ञान केंद्र इस दिशा में पोषक तत्वों से समाहित बीजों का सृजन कर सामुदायिक पोषक के सपने को पूरा करने में अहम् भूमिका निभा रहे हैं. आंगनवाड़ी कार्यकर्ता अपने केंद्र में उपलब्ध भूमि पर कृषि विज्ञान केन्द्रों द्वारा जनित बीजों का प्रयोग कर पोषण वाटिका का निर्माण कर सकती हैं. इससे लाभार्थियों एवं समुदाय तक पोषक तत्वों से भरपूर खाद्य पदार्थों की पहुँच का रास्ता सुगम होगा.
“अपनी क्यारी, अपनी थाली” से जुड़कर सुपोषण का सपना होगा साकार
डॉ प्रेम कुमार, मंत्री, कृषि, पशुपालन एवं मत्स्य विभाग ने कहा कि हमारा देश खाद्दान के मामले में तो आत्मनिर्भर है लेकिन समाज में कुपोषण व्यापत है. कुपोषण से मुक्ति के लिए मार्च 2018 में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने राजस्थान के झुंझुनू से पोषण अभियान की शुरुआत की थी. पौष्टिक आहार की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि, अपने भोजन में दूध, अंडा, सोयाबीन और ताजे फल एवं हरी सब्जियां शामिल करें. साथ ही कृषि मंत्री ने व्यवहार परिवर्तन और न्यूट्री गार्डन पर भी जोर दिया. बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर द्वारा चलाये जा रहे “अपनी क्यारी, अपनी थाली” कार्यक्रम की तारीफ़ करते हुए डॉ प्रेम कुमार ने कहा कि “अपनी क्यारी, अपनी थाली” से जुड़कर महिलाएं सही पोषण, देश रोशन के सपने को साकार कर रही है.
आपसी सहयोग से मिटेगा कुपोषण
कार्यक्रम के दौरान अपर मुख्य सचिव, समाज कल्याण विभाग, बिहार सरकार अतुल प्रसाद ने कहा आपसी सहयोग और सहभागिता से कुपोषण का खत्म किया जा सकता है. जीवन के प्रथम 1000 दिन में पोषक तत्वों की आपूर्ति एक स्वस्थ एवं सुपोषित जीवन की आधारशिला तैयार करते हैं. आहार और व्यवहार में परिवर्तन कर कुपोषण से लड़ा जा सकता है. समुदाय में पोषण को लेकर अधिक से अधिक जागरूकता फैलाकर समुदाय में पोषण की अलख जगाई जा सकती है. बच्चों और महिलाओं के पोषण से ही समाज कुपोषण मुक्त हो सकता है.
स्तनपान से होती है सुपोषित जीवन की शुरुआत
इस दौरान आईसीडीएस के निदेशक अलोक कुमार ने बताया नवजात को छह महीने तक सिर्फ स्तनपान और उसके उपरान्त दो वर्ष तक स्तनपान के साथ समुचित उपरी आहार का समुचित प्रबंधन कर कुपोषण पर लगाम लगायी जा सकती है. साथ ही स्वच्छता के महत्त्व को समुदाय कर पहुंचकर पोषण माह में पोषण के सन्देश को लोगों तक पहुंचाने में सहायता मिलेगी।
कृषि पोषण में कृषि विज्ञान केन्द्रों की भूमिका अहम्
बिहार कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ अजय कुमार सिंह ने सभी कृषि विज्ञान केंद्र में उपस्थित आंगनबाड़ी सेविकाओं को संबोधित करते हुए कहा बिहार कृषि विश्वविद्यालय कृषि पोषण हेतु जारी निरंतर प्रयास कर रहा है. विश्वविद्यालय अपने स्तर से कई तरह के फलों एवं सब्जियों से बने पदार्थों को पैकेजिंग कर किसानों को सीधे मुहैया करा रहा है। उन्होंने कृषि पोषण वाटिका योजना की भी जानकारी दी, जो विश्वविद्यालय के कृषि विज्ञान केंद्र में चलाए जा रहे हैं। इस योजना के माध्यम से सभी आंगनवाड़ी केंद्रों के पास उपलब्ध जमीन पर मौसमी सब्जियों की खेती हेतु बीज एवं अन्य तकनीकी जानकारी उपलब्ध कराई जा रही है ताकि बच्चों को सही पोषण मिल सके।
डॉ आरके सोहाने निदेशक, प्रसार शिक्षा, बिहार कृषि विश्वविद्यालय, सबौर भागलपुर ने कार्यक्रम को संबोधित किया। भारत और बच्चों में कुपोषण की कमी के बारे में चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि आंगनबाड़ी सेविका इसको बहुत आसानी से दूर करने का प्रयास कर सकती हैं। इसी कार्य को कृषि विज्ञान केंद्र अपने फार्म पर एक मॉडल बनाकर कर रहे हैं। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग कार्यक्रम का धन्यवाद ज्ञापन डॉ आर एन सिंह, सह निदेशक, प्रसार शिक्षा बिहार कृषि विश्वविद्यालय सबौर भागलपुर द्वारा की गई।