- सच्चाई का दाम नहीं छोड़ा और आखिरी सांस तक गलत के खिलाफ लड़ते रहे।
- यजीद के सैनिक उन्हें पकड़कर ले गए थे कर्बला
परवेज अख्तर/सिवान: जिले के पचरुखी प्रखंड के तरवारा बाजार स्थित मदरसा बरकातीया अनवारूल उलूम के हाफिज अब्दुल हसीब अशरफी ने मुहर्रम पर्व पर फजीलत बयान करते हुए कहा कि कर्बला की जंग तकरीबन 1400 साल पहले हुई थी।यह जंग जुल्म के खिलाफ इंसाफ और इंसनियत के लिए लड़ी गई थी। दरअसल, यजीद नाम के शासक ने खुद को खलीफा घोषित कर दिया था और वो अपना वर्चस्व कायम करना चाहता था। उसने इसके लिए लोगों पर सितम ढाए और बेकसूरों को निशाना बनाया। वह हजरत इमाम हुसैन से अपनी स्वाधीनता स्वीकार कराना चाहता था। उसने इमाम हुसैन को भी तरह-तरह से परेशान किया लेकिन उन्होंने घुटने नहीं टेके। जब यजीद की यातनाएं ज्यादा बढ़ गई तो इमाम हुसैन परिवार की रक्षा के लिए उन्हें लेकर मक्का हज पर जाने का फैसला किया। हालांकि, उन्हें रास्ते में मालूम चल गया कि यजीद के सैनिक वेश बदलकर उनके परिवार को शहीद कर सकते हैं।
इसके बाद इमाम हुसैन ने हज पर जाने का इरादा छोड़ने दिया, क्योंकि वह नहीं चाहते थे कि पवित्र जमीन खून से सने। उन्होंने फिर कूफा जाने का निर्णय किया,लेकिन यजीद के सैनिक उन्हें पकड़कर कर्बला ले गए। कर्बला में इमाम हुसैन पर बेहद जुल्म किया गया और उनके परिवार के पानी पीने तक पर रोक लगा दी गई। यजीद इमाम हुसैन को अपने साथ मिलाने के लिए लगातार दबाव बनाता रहा। वहीं, दूसरी तरफ इमाम हुसैन ने अपने मजबूत इरादों पर डटे रहे। यजीद के सैनिकों ने फिर इमाम हुसैन, उनके परिवार और साथियों पर हमला कर दिया। इमाम हुसैन और उनके साथियों ने यजीद की बड़ी सेना का हिम्मत के साथ मुकाबला किया।उन्होंने इस मुश्किल वक्त में भी सच्चाई का दाम नहीं छोड़ा और आखिरी सांस तक गलत के खिलाफ लड़ते रहे।