वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमण के बीच मौसमी बीमारियों का भी खतरा, प्रोटोकॉल जारी

0
  • मौसमी बीमारियों से बचाव के लिए ‘उच्च संदेह सूचकांक’ बनाया जाना चाहिए
  • सह-संक्रमण के लिए अलग से जांच करानी होगी
  • कोरोना के साथ-साथ मौसमी इनफ्लुएंजा की जांच

गोपालगंज: कोरोना वायरस संक्रमण से दुनिया पिछले 10 महीने से ज्यादा समय से जूझ रही है। मौसम में बदलाव के साथ ही मौसमी बीमारियों का भी खतरा बढ़ा है। मच्छरजनित बीमारियां डेंगू, मलेरिया और चिकुनगुनिया के मामले भी सामने आ रहे हैं, जबकि वायरल फ्लू या इन्फ्लूएंजा जैसी बीमारियों का बढ़ना भी इस कोरोना काल में ज्यादा खतरनाक है। कोरोना के साथ इन बीमारियों के उपचार का प्रोटोकॉल नहीं होने से चिकित्सक भी चिंतित थे। लेकिन अब केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने कोरोना के साथ इन बीमारियों के सह-संक्रमण के खतरे को देखते हुए उपचार और सावधानियों के दिशानिर्देश जारी किए हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने कहा कि ये बीमारियां न सिर्फ कोविड 19 डायग्नोसिस के लिए क्लीनिकल चुनौतियां पेश करती हैं, बल्कि मरीजों के स्वास्थ्य पर दोहरा असर पड़ता है। कारण यह है कि इन बीमारियों के लक्षण भी कोरोना से मिलते हैं, जो संशय पैदा करते हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय के दिशानिर्देश के मुताबिक, मॉनसून से पहले और बाद में, इन बीमारियों के लिए एक ‘उच्च संदेह सूचकांक’ बनाया जाना चाहिए ताकि समय पर बीमारियों की पहचान हो सके और संभावित कदम उठाए जा सकें।

विज्ञापन
pervej akhtar siwan online
WhatsApp Image 2023-10-11 at 9.50.09 PM
WhatsApp Image 2023-10-30 at 10.35.50 AM
WhatsApp Image 2023-10-30 at 10.35.51 AM
ahmadali

सह-संक्रमण के लिए अलग से जांच करानी होगी

दिशानिर्देश में कहा गया है कि ‘सतर्कता व चौकसी, उच्च संदेह सूचकांक और सह-संक्रमण’ की संभावना के बारे में जागरूकता से चिकित्सकों को सह-संक्रमण के मामलों के खतरनाक परिणामों को रोकने और क्लीनिकल नतीजों को सुधारने में सहायता मिलेगी। इसके लिए कोरोना वायरस की जांच प्रक्रिया तो वही रहेगी, लेकिन संदेह होने पर संभावित सह-संक्रमण के लिए अलग से जांच करानी होगी। सह-संक्रमण के मामलों में, क्रॉस रिएक्शंस हो सकते हैं। यानि गलत निगेटिव या पॉजिटिव रिपोर्ट आ सकते हैं। इसलिए स्वास्थ्य मंत्रालय की गाइडलाइन में ऐसी बीमारियों के मामले में संभावित सह-संक्रमणों के लिए अलग से भी जांच कराने की सलाह दी गई है। इनमें वे तमाम जांच शामिल हैं, जिन्हें आईसीएमआर ने कोविड 19 के लिए, नेशनल वेक्टर बॉर्न डिजीज कंट्रोल प्रोग्राम ने डेंगू, मलेरिया और चिकुनगुनिया के लिए और साथ ही एनसीडीसी ने मौसमी इन्फ्लुएंजा, लेप्टोस्पाइरोसिस के लिए निर्धारित किया है।

कोरोना टेस्टिंग प्रोटोकॉल का होगा पालन

स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि आईसीएमआर और मंत्रालय द्वारा जारी कोरोना वायरस के टेस्टिंग प्रोटोकॉल का पालन किया जाएगा। हालांकि यह भी कहा है कि प्रोटोकॉल के अलावा जब भी सह-संक्रमण का संदेह होगा, अन्य जरूरी जांच भी किए जाने चाहिए। दिशानिर्देश में कोरोना के इलाज की तमाम सुविधाओं की तरह मलेरिया, डेंगू और स्क्रब टाइफस के लिए, रैपिड डायग्नोस्टिक किट्स की उपलब्धता भी सुनिश्चित करने को कहा गया है।

कोरोना के इलाज का असर न दिखे तो

गाइडलाइन में चिकित्सकों को सलाह दी गई है कि कोविड 19 के जिन हल्के या गंभीर मामलों में, इलाज का असर नहीं दिख रहा है, उनमें अन्य बैक्टीरियल संक्रमण पर भी नजर रखें। सभी माध्यमिक और टरशियरी अस्पतालों को डेंगू और कोविड के गंभीर मामलों के लिए तैयार रहने को कहा गया है। हल्के से लेकर मध्यम लक्षणों वाले डेंगू, कोविड 19 और अन्य संक्रमित मरीजों की गहन निगरानी का निर्देश दिया गया है।

स्वास्थ्य मंत्रालय का निर्देश

  • मलेरिया और डेंगू जैसे अन्य संक्रमण साथ हो सकते हैं, इसलिए यह संभावना खारिज नहीं होती कि डेंगू/मलेरिया रहने पर मरीज कोरोना से पीड़ित नहीं है।
  • अगर बुखार होने पर किसी मरीज को कोविड 19 बताया गया हो तो ऐसे में मलेरिया या डेंगू का एक उच्च संदेह सूचकांक होना चाहिए। खास तौर पर बारिश या बाद के मौसम में और ऐसी बीमारियों के संक्रमण वाले इलाको में
  • जिन जगहों पर कोरोना के मामले मौजूद हों, वहां अगर मौसमी इनफ्लुएंजा, ईली, सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी इलनेस (SARI) के मामले दिखें, तो कोरोना के साथ-साथ मौसमी इनफ्लुएंजा की भी जांच कराई जानी चाहिए।
  • मॉनसून के दौरान या उसके बाद लेप्टोस्पाइरोसिस का प्रकोप फैलने वाले इलाकों में सह-संक्रमण की संभावना का ध्यान रखना चाहिए। कारण कि वहां सांस की बीमारी की संभावना रहती है।

बचाव के अन्य उपाय ऐसे हैं

  • समारोहों जैसे बड़े जमावड़ों से बचना
  • 2 गज की शारीरिक दूरी, साफ-सफाई, मास्क का इस्तेमाल
  • स्वास्थ्य सुविधाओं वाली जगह या आसपास मच्छर पैदा होने या पलने की संभावना खत्म करना।
  • हेल्थकेयर वर्कर्स और दूसरे जोखिम समूहों को मौसमी इन्फ्लूएंजा के लिए टीके लगाया जाना।