रमजान का रोजा हर आकिल व बालिग पर फर्ज है: मौलानाअहमद रज़ा जामई

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रमजान के महीने में खोल दिये जाते है जन्नत के दरवाजे और शैतानों को कर लिए जाते है कैद

इस माह में गरीबों की बढ़-चढ़ कर करें मदद

परवेज़ अख्तर/सीवान:- जिले के पचरुखी प्रखंड के काजी टोला गांव स्तिथ नई मस्जिद के खतिबो इमाम मौलाना अहमद रज़ा जामई ने रमजानुल मुबारक पर फजीलत बयान करते हुये कहा की माहे रमज़ान का रोजा हर आकिल व बालिग़ मुसलमान मर्द व औरत पर फर्ज करार दिया गया है।इस माह में अल्ल्लाह तबारक व ताला रिज्क में इजाफ़ा कर देता है।इस माहे मुबारक में अर्श से फर्श पर लगातार रहमतें व बरकते नाज़िल होती रहती है।मुसलमानों को चाहिये की इस माहे मुबारक में ज्यादा से ज्यादा इबादत करके अल्लाह के रहमतें और बरकते हासिल करें।रोजेदारों को चाहिये की अपनी जुबान को हालते रोजा में बुरे अल्फाज को निकालने से परहेज करें। सिर्फ खाना-पीना छोड़ने का नाम रोजा नही बल्कि आँख,कान,दिल व दिमाग़ ,हाथ व पॉव तमाम चीजों को अपने आपको बुराईयों से दूर रखने का नाम रोजा है।मेरे नबी ने फरमाया की अगर कोई शख्स झूठ बोलना और दग़ाबाजी करना रोजे रखकर भी न छोड़े तो अल्लाह तआला को उसकी कोई जरूरत नही के वो अपना खाना-पीना छोड़ दे।इसलिए मुसलमानों को चाहिये की इस हदिशे मुबारका के मुताबिक़ कम से कम रोजे की हालत में अपने आपको दग़ाबाजी और चुगलखोरी वगैरह से महफूज रखे।जब मुसलमानों का रोज़ा हुजूर के हदीश के मुताबिक़ गुज़रेगा तो यकीनन वह रोजेदार इस माहे मुबारक के तमाम तर रहमतों और बरकतों के हकदार होंगे।माहे रमज़ान के महीनों में मुसलामनों को चाहिये के वह ज्यादा से ज्यादा गरीबों की मदद करें,रोजेदारों को इफ्तार कराये,बेसहारों का सहारा बनें,यतीमों की देख-भाली करें, और अपनी ख़ुशी में उन यतीमों की ख़ुशी शामिल करें जिनका कोई सहारा न हो।रोजेदारों के लिये रोजा के बदले में अजरो सवाब का कोई इन्तेहाँ नही है।हदीसे कुदसि में अल्लाह तबारक व ताला ने इरशाद फरमाया है की रोजा मेरे लिये है और मैं हीं उसका बदला हूँ।मुसलमानों को सोचना चाहिये के हर इबादत का सवाब जन्नत है लेकिन रोजा ही एक ऐसी इबादत है जिसका अजर मुलाकाते ख़ालिक़े जन्नत है। माहे रमजान ही एक ऐसा महीना है की जिसमे हर इबादत का सवाब बढ़ा दिया जाता है।रमजान के महीनें में शैतान को कैद कर दिया जाता है।और जन्नत (स्वर्ग)के सभी दरवाजे खोल दिये जाते है।और जहन्नम (नरक) के दरवाजे बंद कर दिए जाते है।इस माह में नफ़िल नमाज़ का अजर फर्ज नमाज़ के बराबर है।और फर्ज का सवाब 70 गुना ज्यादा कर दिया जाता है।

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