परवेज अख्तर/सिवान :- बिहार के नियोजित शिक्षकों की समान काम के बदले समान वेतन देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई पुनर्विचार याचिका बुधवार को खारिज कर दी गई। याचिका खारिज होने ले बाद शिक्षकों के अरमानों पर एक बार फिर से पानी फिर गया है। न्यायाधीश अभय मनोहर सप्रे और उदय उमेश ललित की बेंच में शिक्षकों के मामले को रखा गया था। इधर याचिका खारिज होने के बाद से शिक्षकों में राज्य सरकार के प्रति काफी गुस्सा देखा जा रहा है। बताते चलें कि इसी साल 10 मई को सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में बिहार के नियोजित शिक्षकों को समान काम के बदले समान वेतन देने से इनकार कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट में याचिका खारिज होने पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए प्रगतिशील प्रारंभिक शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष मंगल कुमार साह ने कहा कि राज्य की सरकार शिक्षा और शिक्षकों के खिलाफ काम कर रही है। शिक्षक हर काम को सरकार द्वारा तय किए गए पैरामीटर के अनुसार कर रहे हैं। कहा कि पूर्ण वेतनमान वाले शिक्षकों से किसी भी मामले में हम कम काम नहीं करते हैं, फिर भी पूर्ण वेतनमान देने में सरकार अपनी असमर्थता जता रही है। कहा कि एक साजिश के तहत हम शिक्षकों का शोषण किया जा रहा है। अगर राज्य की सरकार शिक्षकों के पुनर्विचार याचिका का विरोध नहीं करती तो फैसला हमारे हक में होता। कहा कि समान काम के बदले में समान वेतन संवैधानिक अधिकार की श्रेणी में आता है। लेकिन केंद्र और राज्य की सरकार ने गलत तथ्यों को पेश करके सुप्रीम कोर्ट को गुमराह करने का काम किया है।
हिटलरशाही नीति को करेंगे दफन
शिक्षक नेताओं ने कहा कि सरकार की हिटलरशाही नीति को हम सभी नियोजित शिक्षक दफन करके ही रहेंगे। शिक्षकों को बार-बार अपमानित करना कहीं सरकार के लिए महंगा न पड़ जाय। टीईटी एसटीईटी नियोजित शिक्षक संघ के अध्यक्ष रजनीश मिश्रा और महासचिव श्रीकांत सिंह ने कहा कि बिहार सरकार की मंशा अब स्पष्ट रूप से सामने आ गई है। सरकार शिक्षकों के बेहतर जीवन यापन के बारे में कोई सोच नहीं रखना चाहती। शिक्षकों पर काम का बोझ लादना, प्रताड़ित व बदनाम करना ही सरकार को सूझ रहा है।