- बच्चों के पोषण स्तर में सुधार की आवश्यकता पर हुई चर्चा
- गोपालगंज में सेविकाओं को दिया गया ऑनलाइन प्रशिक्षण
- “बेटी बचाव, बेटी पढ़ाओं” अभियान पर हुई चर्चा
- राष्ट्रीय जन सहयोग बाल विकास संस्थान के द्वारा दिया गया प्रशिक्षण
गोपालगंज: जिले में आगनबाड़ी सेविकाओं, महिला सुपरवाइजर व सीडीपीओ को मातृ मृत्यु व शिशु मृत्यु दर को कम करने को लेकर प्रशिक्षण दिया गया। राष्ट्रीय जन सहयोग बाल विकास संस्थान लखनऊ के द्वारा ऑनलाइन प्रशिक्षण दिया गया। राष्ट्रीय जन सहयोग बाल विकास संस्थान के उप निदेशक डॉ. एन खान ने आईसीडीस के उद्देश्यों पर चर्चा की तथा आंगनबाड़ी सेविकाओं व महिला सुपरवाइजरों को प्रशिक्षण दिया। इस दौरान डॉ. एन खान ने कहा बिहार में शिशु मृत्यु दर में लगातार सुधार हो रहा है। सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम (2018) के हालिया सर्वेक्षण में बिहार में शिशु मृत्यु दर 32 (प्रति हजार जीवित जन्मे बच्चों में) है। हालांकि राज्य में पोषण से संबंधित संकेतकों में सुधार की दिशा में अभी एक लंबा रास्ता तय करना है। इसमें पांच साल से कम उम्र के बच्चों, किशोरों और गर्भवती महिलाओं पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। उन्होने बताया बिहार में हर 3 में से एक बच्चा उम्र के हिसाब से कम वजन का है। यानि 35 प्रतिशत बच्चे उम्र के हिसाब से कम वजन के है। इस को कम करने के लिए कार्य करने की आवश्यकता है। कुपोषित बच्चों को एनआरसी सेंटर में भेजें ताकि उनका बेहतर उपचार मिल सके।
छह माह के बाद दें ऊपरी आहार
डॉ. एन खान ने बताया छह माह के बाद बच्चों को ऊपरी आहार देना चाहिए। इसके साथ ही साथ उपरी आहार के साथ माँ का भी दूध मिलाते रहना चाहिए। उन्होंने कहा इसके लिए माता-पिता को भी जागरूक करने की आवश्यकता है। सेविका घर-घर जाकर इस बात की जानकारी दें कि परिजन अपने बच्चे को छह माह के बाद ऊपरी आहार दें। दिन में तीन बार कटोरी से पौष्टिक आहार देना है।
सरकार द्वारा चलायी जा रही है कई कल्याणकारी योजनाएं
मातृ मृत्यु व शिशु मृत्यु दर को कम करने के लिए सरकार द्वारा कई कल्याणकारी योजनाएं चलायी जा रही है। पीएमवीवाई, मुख्यमंत्री कन्या उत्थान योजना, जननी सुरक्षा योजना शामिल है। इस कार्यक्रम के मातृ मृत्यु व शिशु मृत्यु दर को कम करने में काफी हद तक सहयोग मिल रहा है।
गर्भवती व किशोरियों के विशेष देखभाल से बदलेगी तस्वीर
प्रशिक्षण के दौरान डॉ. एन खान ने कहा गर्भवती महिलाओं व किशोरियों के देखभाल किया जाये तो काफी हद तक कुपोषण के स्तर में सुधार संभव है।
एनीमिया एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या
एनीमिया एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या है जो स्वास्थ्य व तंदुरुस्ती के साथ-साथ पढ़ने एवं काम करने की क्षमता को भी विपरीत रूप से प्रभावित करती है। गर्भवती माताओं के लिए आयरन की 180 गोली का सेवन करना होता है। एनीमिया मुक्त भारत कार्यक्रम के अंतर्गत 6-59 माह के शिशु, 5-9 वर्ष के बच्चे, 10-19 वर्ष के विद्यालय जाने वाली किशोरियों, प्रजनन उम्र की महिलाओं, गर्भवती और धात्री महिलाओं में आयरन फोलिक एसिड का अनुपूरण किया जाता है।
ध्यान देने वाली बातें
- जन्म के प्रथम घंटे में यथाशीघ्र और जन्म से प्रथम छह माह तक सिर्फ मां का दूध ही बच्चे को दें।
- छह माह पूर्ण होते ही शिशु को मां के दूध के साथ-साथ घर पर बना हुआ अर्द्ध ठोस आहार देने से शिशु का शारीरिक और बौद्धिक विकास तेजी से होता है।
- मां कोरोना वायरस से संक्रमित या संदिग्ध है तो भी मानकों को ध्यान में रखते हुये स्तनपान जारी रख सकती है।