बहनों ने की भाइयों के दीर्घायु व सुखमय जीवन की कामना

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परवेज अख्तर/सीवान:
जिला मुख्यालय समेत विभिन्न प्रखंडों में सोमवार को गोवर्धन पूजा एवं भैया दूज धूमधाम से मनाया गया। परंपरा के अनुसार यह पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष द्वितीया को मनाया जाता है। सोमवार की अल सुबह घर की बुजुर्ग महिलाओं द्वारा परंपरागत तरीके से हसुआ तथा कंडा की लकड़ी से सूप बजाकर घर से दरिद्र भगाने की रस्म अदा की गई। इसके बाद स्नानादि से निपटने के बाद महिलाएं गोवर्धन पूजा स्थल  पर पहुंची, जहां परंपरागत रूप से बनाए गए अन्नकूट एवं गोवर्धन के प्रतीकों की पूजा की गई तथा रेंगनी के कांटा से अपने जिह्वा का छेदन करते हुए श्राप दी। बहनों ने अपने भाइयों की दीर्घायु एवं सुखमय जीवन कामना की। इस दौरान महिलाओं द्वारा गोवर्धन से संबंधित पारंपरिक गीत गोधन भैया चलले अहेलिया.., ओह पार गोधन भैया खेलेले शिकार समेत कई गीतों की प्रस्तुति से वातावरण भक्तिमय हो गया। गोधन कूटने को ले सुहागिनों एवं युवतियों में काफी उत्साह देखा गया। इसके बाद बहनों ने भाई को बजड़ी खिलाकर को ब्रज होने का आशीर्वाद दिया।

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उत्साहपूर्वक मना भैया दूज का पर्व

भैया दूज का पर्व सोमवार को उत्साह के साथ मनाया गया। बहनों का भाइयों के यहां पहुंचने का सिलसिला जारी रहा। माथे पर टीका लगाते हुए बहनों ने भाइयों की सलामती की दुआ मांगी। मान्यता है कि जो भाई अपनी बहन के यहां बहन द्वारा बनाए गए भोजन करते हैं, वे हमेशा सुखमयी होते हैं। यह परंपरा आज भी है। कई भाइयों द्वारा अपने बहन के यहां भोजन करना तथा बजड़ी के रूप में कच्चा चना, मटर एवं मिठाई खाने के लिए दिए जाते हैं। भाई बहन के प्रेम को सूत्र में पिरोते इस त्योहार का जितना उत्साह बहनों में दिखा उतने ही भाई भी उत्साहित दिखे। भाइयों ने भी बहनों को स्नेह स्वरूप उपहार दिया।

आचार्य पंडित उमाशंकर पांडेय ने बताया कि दीपावली के बाद भाई दूज के दिन ही यमराज ने अपनी बहन यमी के घर का रुख किया था, जहां पर यमराज की बहन यमी ने उनके माथे पर तिलक लगाकर उनकी सलामती के लिए दुआ मांगी थी। मान्यता है कि इस दिन जो भी भाई अपनी बहन से माथे पर तिलक लगवाता है, वह कभी भी नर्क में नहीं जाता। वहीं, एक अन्य दंत कथा के अनुसार भगवान कृष्ण ने नारकासुर का वध करने के बाद अपनी बहन सुभद्रा के घर का रुख किया था। वहां पर कृष्ण की बहन सुभद्रा ने दिए जलाकर भाई का स्वागत किया था और तिलक लगाकर उसकी लंबी उम्र की दुआ मांगी थी। वर्तमान में भी यह प्रथा चली आ रही है। ऐसा माना जाता है कि दीपावली का पर्व इस त्योहार के बिना अधूरा है।

शुरू होंगे मांगलिक कार्यक्रम

परंपरा के अनुसार गोवर्धन पूजा के साथ ही मांगलिक कार्यक्रम शादी-विवाह, उपनयन, गृहप्रवेश, मुंडन, सतइसा आदि मांगलिक कार्य आरंभ होते हैं। जो शादी-विवाह व उपयनयन, गृहप्रवेश समेत अन्य मांगलिक कार्य आरंभ हो गया। इसके पूर्व रविवार को गोबर से बनी देव तुल्य भगवान गोवर्धन की प्रतिमा बहनों द्वारा बनाई गई और उन्हें फूल-पत्तियों, पेड़-पौधों से आच्छादित कर सोमवार को प्रात: पूरे मनोयोग एवं भक्तिभाव के साथ महिलाओं एवं कन्याओं ने अपने भाई के प्रति अटूट आस्था का पर्व भैया दूज के लिए इक्कट्ठा होकर पारंपरिक गीतों के माध्यम से भगवान गोवर्धन से अपने भाई के लिए आशीष मांगी। यह पूजा जिला मुख्यालय समेत महाराजगंज, दारौंदा, भगवानपुर, लकड़ी नबीगंज, बसंतपुर, तरवारा, आंदर, पचरुखी, बड़हरिया, हुसैनगंज, दरौली, गुठनी, नौतन, जीरादेई, गोरेयाकोठी, रघुनाथपुर, हसनपुरा, सिसवन आदि प्रखंडों में धूमधाम से मनाया गया।