परवेज अख्तर/सिवान: यह महीना मुसलमानों के लिए अहमियत वाला है. मोहर्रम की तीसरी तारीख मंगलवार अकीदत के साथ मनाई गई. भीखपुर के अलग-अलग घरों और इमाम बारगाह में मजलिस, तकरीर हुई. तकरीर में इस्लाम को बचाने के लिए करबला के मैदान में हुए जंग के बारे में तफसील से बताया गया. मौलाना ने कहा कि इस्लाम में मोहर्रम महीने की बड़ी अहमियत व फजीलत है. इसलिए इस महीने में दरूद, तकरीर के साथ सबील, लंगर का खूब एहतमाम करें. ज्यादा से ज्यादा इबादत करें, कब्रिस्तान जाकर सभी मरहूमों की मगफिरत की दुआएं करें, ज्यादा से ज्यादा गरीबों, यतीमों, बेवाओं, कमजोर की खिदमत करें. फिजूलखर्ची, दिखावा, शोर-शराबा से बचें.
मौलाना मिर्जा जावेद ने कहा कि मदीना से कर्बला तक के सफर में हजरत इमाम हुसैन ने अमन का संदेश दिया. उन्होंने बताया कि जंग में पहल नहीं करनी चाहिए. उसे टालने की कोशिश करनी चाहिए. अगर पवित्र धार्मिक स्थलों में फसाद का अंदेशा हो तो उस जगह को छोड़ देना चाहिए. लेकिन उन्होंने कभी यह नहीं कहा कि हक व सच्चाई के रास्ते से हट जाना चाहिए बल्कि यह संदेश दिया है कि भले ही सर कट जाए मगर जालिम का समर्थन नहीं करना चाहिए. इमाम हुसैन का कर्बला के मैदान में यही पैगाम है कि अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाने में जितनी देर करोगे उतना ज्यादा बलिदान देना पड़ेगा.
उन्होंने कहा कि मुहर्रम आतंकवाद के खिलाफ उठने वाली आवाज का नाम है. इसे कर्बला के शहीदों की याद में मनाया जाता है. जिस कर्बला की जंग इमाम हुसैन ने जुल्म और नाइंसाफी के विरुद्ध लड़ी थी. मौके पर आले इब्राहिम रिजवी, मोहम्मद अली रिजवी, सरवर अली, डॉ एजाज रिजवी, मो. जकरिया, वफादार हुसैन, यहिया रिजवी, सैयद आज़म रज़ा, मुजाहिद अब्बास, सइद रिजवी, कल्बे अब्बास, सैयद हसन रिजवी, ईशरत इमाम, नजरे इमाम, बाबर अब्बास, महमूद अली, तहूर अब्बास, गुलाम नजफ, रहबर रज़ा, पंजू इमाम आदि उपस्थित थे.