परवेज़ अख्तर/सिवान: लोक आस्था का चतुर्दिवसीय व्रत छठ महापर्व की समाप्ति के साथ अक्षय नवमी की तैयारियां होने लगी है। अक्षय नवमी या आंवला नवमी को हिंदू संस्कृति में सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक माना जाता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष के नवमी तिथि को अक्षय नवमी मनाया जाता है। जिला मुख्यालय समेत ग्रामीण क्षेत्रों में बुधवार को अक्षय नवमी मनाया जाएगा। यह प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने का भारतीय संस्कृति का पर्व है। इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा कर परिवार के लिए आरोग्यता व सुख-सौभाग्य की कामना की जाती है। आचार्य पंडित उमाशंकर पांडेय ने बताया कि अक्षय नवमी के दिन किया गया तप, जप, दान आदि मनुष्य को सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति दिलाता है। साथ ही सभी मनोकामनाओं की पूर्ति करने वाला होता है। शास्त्रों के अनुसार अक्षय नवमी के दिन आंवले के वृक्ष में भगवान विष्णु और शिवजी का निवास होता है। मान्यता है कि इस दिन आंवले के वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन करने से सभी रोगों का नाश होता है।
माता लक्ष्मी ने की थी सर्वप्रथम आंवला की पूजा :
आचार्य ने बताया कि आंवला नवमी पर आंवले के वृक्ष की पूजा और इसके नीचे भोजन करने की प्रथा की शुरुआत माता लक्ष्मी ने की थी। पौराणिक कथा के अनुसार माता लक्ष्मी ने आंवले के वृक्ष को भगवान विष्णु और शिव का प्रतीक चिह्न मानकर आंवले के वृक्ष की पूजा की थी। मान्यता है कि अक्षय नवमी के दिन स्नान, पूजन, तर्पण तथा अन्न दान करने से हर मनोकामना पूरी होती है। शास्त्रों में इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा करने का नियम बताया गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आंवले का वृक्ष भगवान विष्णु को अतिप्रिय है, क्योंकि इसमें माता लक्ष्मी का वास होता है। इसलिए इसकी पूजा करने का मतलब विष्णु-लक्ष्मी की पूजा करना माना जाता है।
ऐसे करें आंवला नवमी की पूजा :
सूर्योदय से पूर्व स्नानादि कर आंवले के वृक्ष की पूजा का विधान है। आंवले की जड़ में दूध चढ़ाकर रोली, अक्षत, पुष्प, गंध आदि से पवित्र वृक्ष की विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए। इसके बाद आंवले के वृक्ष की सात बार परिक्रमा करने के बाद दीप प्रज्जवलित करनी चाहिए। इसके उपरांत कथा का श्रवण या वाचन करना चाहिए। अक्षय नवमी के दिन आंवले की पूजा करना या आंवले के वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन बनाना और खाना संभव ना हो तो इस दिन आंवला खाना चाहिए।