- रियल टाइम एनालिसिस एंड फीडबैक टूल का संक्षिप्त रूप है राफ्ट
- दिन में 10 से 12 बार व रात्रि में 3 से 4 बार स्तनपान जरूरी
- कुपोषित बच्चों को एनआरसी में किया जाता है भर्ती
परवेज अख्तर/सिवान: जिले में नवजात शिशु मृत्यु दर को कम से कमतर करने की दिशा में अत्याधुनिक तकनीक के सहयोग से लगातार कार्य किया जा रहा है. इसके तहत “राफ्ट” नामक मोबाइल एप्लीकेशन की मदद से शिशु स्वास्थ्य की लगातार मॉनिटरिंग की जा रही है. मालूम हो राफ्ट का फूल फॉर्म रियल टाइम एनालिसिस एंड फीडबैक टूल है. इस तकनीक के जरिये स्वास्थ्य कर्मी ऑनलाइन जीपीएस के माध्यम से लगातार नवजात शिशु के स्वास्थ्य की देखभाल कर रहे हैं. इस तकनीक की मदद से जिला में शिशु मृत्यु दर को कम से कमतर करने का प्रयास किया जा रहा है. पूरे राज्य में अभी मैटरनल और चाइल्ड डेथ का आंकड़ा 149 अर्थात तीन डिजिट में है. इस मोबाइल एप के माध्यम से शिशु के जन्म के बाद कमजोर नवजात शिशु की पहचान कर लगातार छह महीने तक उसकी विशेष देखभाल केयर इंडिया के प्रखंड प्रबंधक और स्वास्थ्य कर्मी कर रहे हैं.
“राफ्ट” मोबाइल एप्लीकेशन से कैसे की जाती है नवजात शिशु की देखभाल
केयर इंडिया के डिटीएल कृति धमीजा ने बताया कि शिशु जन्म के बाद चिह्नित किए गए नवजात शिशु की देखभाल के लिए एक सप्ताह के अंदर चार दिनों तक केयर इंडिया के कर्मी स्वास्थ्य कर्मी के साथ बच्चों के घर जाते हैं. इसके बाद मोबाइल एप्लीकेशन राफ्ट पर शिशु की तस्वीर अपलोड करने के बाद शिशु स्वास्थ्य की उचित देखभाल की सलाह दी जाती है. इसके बाद चौथे और सातवें दिन केयर इंडिया के प्रखंड स्तरीय स्वास्थ्य प्रबंधक मौके पर पहुंचकर इसी प्रक्रिया को दोहराते हैं. उन्होंने बताया कि जिला के सभी प्रखंड में कार्यरत केयर इंडिया के सभी स्वास्थ्य प्रबंधकों को इसकी जिम्मेदारी दी गई है, जो जिला के सभी प्रखंडों में कार्यरत हैं.
कुपोषित बच्चों को एनआरसी में किया जाता है भर्ती
राफ्ट मोबाइल एप्लीकेशन के माध्यम से नवजात शिशु के कुपोषित चिह्नित होने के बाद शिशु को उसकी मां के साथ सदर अस्पताल स्थित पोषण एवं पुनर्वास केंद्र (एनआरसी) में 28 दिनों के लिए भर्ती कराया जाता है. जहां शिशु स्वास्थ्य के सभी मानकों के अनुसार नवजात शिशु के स्वास्थ्य की नियमित देखभाल की जाती है. यहां शिशु स्वास्थ्य के नियमित देखभाल के लिए फीडिंग डिमांस्ट्रेटर के साथ -साथ कई स्वास्थ्य कर्मी कार्यरत हैं.
कुपोषित बच्चों की पहचान
जिला स्वास्थ्य समिति के डीपीएम ठाकुर विश्वमोहन ने बताया कि शिशु जन्म के बाद कुपोषित शिशु की पहचान की जाती है. इसके लिए कुछ मापदंड हैं. शिशु जन्म के समय शिशु का वजन 2000 ग्राम या 2000 ग्राम से कम होना. शिशु का 37 सप्ताह से पहले जन्म लेना. मां का स्तनपान करने में नवजात शिशु का सक्षम नहीं होना. यह कुपोषित बच्चों की पहचान करने मापदंड है.