गोपालगंज : जिले में 3 मार्च को वर्ल्ड हियरिंग डे का आयोजन किया जाएगा। इस अवसर पर सभी स्वास्थ्य स्थानों पर विशेष कैंप का आयोजन किया जाएगा। जिसमें श्रवण दोष से बचाव एवं देखभाल के लिए आम जनों को जागरूक किया जाएगा। इसको लेकर राज्य स्वास्थ्य समिति के एनपीपीसीडी के राज्य कार्यक्रम पदाधिकारी डॉ मो. सज्जाद अहमद ने पत्र लिखकर सिविल सर्जन को आवश्यक दिशा निर्देश जारी किया है। जारी पत्र में कहा गया है कि नेशनल प्रोग्राम फॉर प्रीवेंशन एंड कंट्रोल आफ डेफ्नेस कार्यक्रम के अंतर्गत अनुवांशिक अथवा एक्वायर्ड बहरापन से निपटने के लिए इस बीमारी का समय रहते उपचार किया जाना आवश्यक है. इस बीमारी से एक बड़ी आबादी प्रभावित है। विश्व स्वास्थ संगठन 2018 के आंकड़ों के अनुसार भारत में लगभग 63 लाख लोग श्रवण दोष से ग्रसित हैं। जिसमें 7.6% वयस्क तथा 2.0% बच्चे बहरेपन से ग्रसित हैं। इसे ध्यान में रखते हुए 3 मार्च को वर्ल्ड हियरिंग डे प्रतिवर्ष आयोजित किया जाता है। इस दौरान जिले में श्रवण दोष से बचाव एवं देखभाल के लिए जागरूक किया जाना है ।
बैनर पोस्टर के माध्यम से किया जाएगा प्रचार प्रसार:
वर्ल्ड हियरिंग डे के अवसर पर सभी स्वास्थ्य संस्थानों प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, अनुमंडलीय अस्पताल व सदर अस्पताल में शिविर का आयोजन किया जाएगा और इसके प्रचार-प्रसार के लिए बैनर पोस्टर लगाए जाएंगे ताकि अधिक से अधिक व्यक्तियों को इसका लाभ पहुंचाया जा सके।
श्रवण दोष के लक्षण:
- सुनने में कठिनाई
- कान में भनभनाहट
- कान में दर्द
- कान का बहना
- अन्य लोगों के ठीक से नहीं बोलने का आभास
- शोर में बात समझने में कठिनाई
सलाह के बिना दवा नहीं लें:
सिविल सर्जन डॉ. टीएन सिंह ने बताया गर्भावस्था के दौरान चिकित्सक की सलाह के बिना दवा लेने से नवजात बच्चों में श्रवण दोष हो सकता है। कोई भी दवा लेने से पहले हमेशा चिकित्सक की सलाह लें। नियमित रूप से बच्चों का टीकाकरण करायें। गलसुआ और खसरा जैसे रोग बच्चों में बहरापन का का कारण बन सकती है. अन्य बच्चों के साथ घुलने मिलने के लिए श्रवण दोष बाले बच्चे को प्रोत्साहित करें। यह मनोवैज्ञानिक एवं संचार कौशल विकसित करने में मदद करेगा।
60 साल की आयु के बाद वर्ष में एक बार श्रवण जांच अवश्य करायें:
श्रवण दोष से पीड़ित व्यक्ति अपने कानों को तेज ध्वनि जैसे टीवी, रेडियो, इयरफोन, पटाखों एवं संगीत की तेज आवाज से बचायें। अपने कानों को चोट से बचायें. इससे कान के परदों को नुकसान हो सकता है। अपने कानों को गंदे पानी के प्रवेश से बचायें एवं अपने कानों में तेल या कोई नुकीली वस्तु, माचिस की तीली अथवा इयरबड्स का प्रयोग नहीं करें। 60 साल की आयु के बाद वर्ष में एक बार श्रवण जांच अवश्य करायें।