- लोकतांत्रिक जन पहल ने कारगिल चौक पर किया विरोध प्रदर्शन
- सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर उठाये गए सवाल
- ‘मुकदमा निराधार, सुप्रीम कोर्ट सजा मुक्त करे’ स्लोगन के साथ किया गया विरोध
पटना : प्रशांत भूषण द्वारा अवमानना को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सजा सुना दी है. जैसा कि पूर्व में ही सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रशांत भूषण को कोर्ट अवमानना के लिए माफ़ी मांगने की बात कही गयी थी. लेकिन प्रशांत भूषण ने माफ़ी मांगने से साफ़ इंकार कर दिया था. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सजा सुनाते हुए 1 रूपये का जुर्माना या 3 महीने का कारावास सहित 3 साल तक वकालत करने पर रोक लगाने की बात कही है. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ लोगों में रोष देखा जा रहा है. लोकतांत्रिक जन पहल ने सोमवार को ही पटना के कारगिल चौक पर प्रशांत भूषण को सुनाई गयी सजा के खिलाफ़ विरोध प्रदर्शन किया. ‘मुकदमा निराधार, सुप्रीम कोर्ट सजा मुक्त करें’- इस स्लोगन के साथ लोकतांत्रिक जन पहल ने विरोध प्रदर्शन में आवाज को बुलंद किया जिसमें बढ़ी संख्या में महिलाएं सहित लोग शामिल हुए.
देश में पहला अलोकतांत्रिक फैसला
जाने माने राजनीतिक कार्यकर्ता व राजनैतिक विश्लेषक सत्यनारायण मदन ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रशांत भूषण को कोर्ट अवमानना के तहत दोषी मानते हुए सजा सुनाई गयी है. लेकिन यह मामला कोर्ट अवमानना का कहीं से नहीं है. भाजपा के एक नेता के 50 लाख के वाहन पर मुख्य न्यायधीश लॉकडाउन की अवधि में बिना हेलमेट के घूम रहे थे जिनकी फोटो सोशल मीडिया में वायरल हुयी थी. इस पर यदि प्रशांत भूषण की यह टिपण्णी आती है कि मुख्य न्यायाधीश को ऐसी गलती नहीं करनी चाहिए थी, तो उनकी यह सोच प्रासंगिक भी है. उन्होंने बताया कि उन्हें लगता कि प्रशांत भूषण की यह टिपण्णी कहीं से भी कोर्ट का अवमानना नहीं हो सकता. यह कोर्ट के बाहर की गतिविधि है जिसे कोर्ट अवमानना से जोड़ना सरासर गलत होगा. यह मुख्य न्यायधीश के निजी मर्यादा के उल्लंघन के अलावा और कुछ नहीं है. उन्होंने बताया कि देश में पहली बार सुप्रीम कोर्ट के द्वारा इस तरह का अलोकतांत्रिक फैसला सुनाया गया है. वहीं बार के सदस्यों द्वारा भी प्रशांत भूषण को किसी तरह की सजा नहीं देने की गुजारिश की गयी थी. लेकिन बार सदस्यों की सोच को दरकिनार करते हुए बेंच के द्वारा दिया गया यह फैसला संविधान के नियमों के गलत इस्तेमाल की तरफ इशारा करता है.
नैसर्गिक प्रक्रिया का भी किया गया उल्लंघन
लोकतांत्रिक जन पहल ने इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट के फैसले की निंदा की है और कहा है कि एक रुपए का जुर्माना लगाना और न देने पर तीन महीने की जेल एवं तीन साल तक वकालत पर रोक , यह बेतुका फैसला है। इस फैसले ने न्यायालय के विवेक और विश्वसनीयता पर प्रश्न चिन्ह खड़ा किया है। लोजप का मानना है कि यह फैसला हमारे संवैधानिक व लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ तो है ही , सुनवाई की पूरी प्रक्रिया, न्याय की नैसर्गिक प्रक्रिया का भी उल्लंघन है। लोकतांत्रिक जन पहल ने कहा है कि प्रशांत भूषण ने न्यायिक प्रक्रिया में कभी बाधा नहीं पहुंचायी बल्कि वह न्यायिक दायरे में रहकर आवाज उठाते रहे हैं। उन्होंने मुख्य न्यायाधीश के द्वारा निजी तौर पर मर्यादा का उलंघन किए जाने पर टिप्पणी की थी।
अवमानना की आड़ में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाना असंवैधानिक
कारगिल चौक पर विरोध प्रर्दशन में शामिल लोग नारों की तख्तियां लिए आवाज बुलंद कर रहे थे। तख्तियों पर लिखा था, अवमानना की आड़ में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को दबाना असंवैधानिक, जज के निजी अमर्यादित आचरण की आलोचना अवमानना नहीं, न्यायिक प्रक्रिया का लोकतान्त्रिकरण करो, रिटायर जजों की पुनर्नियुक्ति बंद करो, न्यायपालिका में उच्चस्तरीय भ्रष्टाचार पर रोक लगाओ, हाई कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट के जजों की बहाली मं आरक्षण लागू करो, न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित करो और न्यायपालिका जनता के प्रति जवाबदेह है
प्रर्दशन में शामिल प्रमुख लोगों में कंचन बाला, सुधा वर्गीज, डोरोथी, फ्लोरिन, असृता, आसमां खान , मणिलाल एडवोकेट, शैलेन्द्र प्रताप एडवोकेट,अनुपम प्रियदर्शी, निर्मल नंदी, विनोद रंजन, कृष्ण मुरारी , अशर्फी सदा, अनवारूल होदा, आजमी बारी एडवोकेट, कपिलेश्वर जी, ऋषि आनंद, विवेक, अनूप कुमार सिन्हा, प्रवीण कुमार मधु, प्रो सतीश, एम आजम, जावेद अख्तर, मनोज प्रभावी, राजकुमार और मनहर कृष्ण अतुल, मो आरज़ू और मोनाजिर हसन के नाम उल्लेखनीय हैं।