परवेज अख्तर/सीवान:
मैरवा में कुष्ठ की सेवा में अपनी पूरी जिंदगी खपा देने वाले जगदीश दीन को मैरवा के युवाओं ने अनुग्रह नगर स्थिति राजेन्द्र सेवाश्रम पर उनके समाधि स्थल पर पहुँच कर उन्हें श्रद्धा सुमन समर्पित कर उनके व्यक्तित्व और उनके कृतित्व को याद किया. उस समय कुष्ट को अभिशाप समझा जाता था. कुष्ट रोगियों के साथ समाज अछूत सा व्यवहार करता था .उनकी सेवा को ही अपना धर्म मानकर उनके उत्थान एवं बसाव के लिए काम करने वाले जगदीश दीन मरकर भी अमर हैं. उनकी सेवा भावना हम सब को प्रेरित करते रहती है. यह बाते समाजिक कार्यकता कश्यप अनुराग ने जयंती समारोह के दौरान कहा. उनकी दत्तक पुत्री रेणु साह ने कहा कि यहां इलाज और सेवा के साथ-साथ रोगियों को आत्मनिर्भर बनाने का काम भी होता रहा.
काम कर पाने वाले रोगियों के अलावा दलित पिछड़ो और विधवाओं को स्वनिर्भर बनाने के लिए दुग्ध उत्पादन, सिलाई कढ़ाई, बागवानी का प्रशिक्षण दिया जाता था. शिक्षक श्रीकांत सिंह ने बताया कि बाबा राघवदास के शिष्य जगदीश दीन अपने गुरु की आज्ञा से कुष्ट रोगियों की सेवा का व्रत लिया था. और उसे आजीवन निभाया. उनके व्यक्तित्व पर गांधीजी और विनोबा भावे का काफी प्रभाव पड़ा.वे सच्चे गांधीवादी थे. मैरवा के सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं इमानदार बुद्धिजीवियों को आगे आकर उनके स्मृतियों को सजोना चाहिए. कुछ लोग उनके नाम पर पहचान की राजनीति कर रहे हैं. यह अच्छी बात नहीं है.इस मौके पर राजेन्द्र कुष्ट सेवाश्रम मन्दिर की पुजारी लवंगी कुँवर,अभिषेक शर्मा और आश्रम के कुष्ट रोगी मौजूद रहें.