पटना: बिहार विधानसभा में आज 31 मार्च 2020 को समाप्त हुए वित्तीय वर्ष का नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट पेश किया गया। डिप्टी सीएम तारकिशोर प्रसाद ने विधानमंडल के दोनों सदनों में इस रिपोर्ट को रखा। रिपोर्ट में नीतीश सरकार के सुशासन की पोल खुल गई है. नियंत्रक महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट में राजकोषीय स्थिति की वास्तविक स्थिति को बताया गया है।
कैग रिपोर्ट में कहा गया है कि 2019 के दौरान बिहार को 2008-09 के बाद पहली बार 1784 करोड़ का राजस्व घाटा हुआ. बिहार ने इस दौरान 14724 करोड़ का राजकोषीय घाटा दर्ज किया जो पिछले वर्ष की तुलना में 917 करोड़ यानी 6.64% बढ़ गया. राज्य का प्राथमिक घाटा वर्ष 2015-16 में 4963 करोड़ से घटकर 19-20 में 3733 करोड़ हो गया. 2018-19 में थोड़ी कमी हुई .पिछले वर्ष की तुलना में 2019-20 के दौरान राजस्व प्राप्ति में 7561 करोड़ यानी 5.74% की कमी देखी गई जो बजट आकलन से 29.71% कम था. पिछले वर्ष की तुलना में 2019-20 में राजस्व व्यय में 1120 करोड़ रुपए की वृद्धि हुई जो बजट आकलन से 18.82% कम था. वित्तीय वर्ष के अंत में बकाया लोकप्रिय पिछले वर्ष की तुलना में 22035 करोड़ यानी 17.47% बढ़ गया।
कैग रिपोर्ट में उपयोगिता प्रमाण पत्र को लेकर भी सरकार पर गंभीर सवाल खड़े किए गए हैं . 31 मार्च 2020 तक 79690.92 करोड़ के उपयोगिता प्रमाण पत्र लंबित थे. अधिक मात्रा में लंबित उपयोगिता प्रमाण पत्र से दुरुपयोग एवं गबन की संभावना रहती है. लंबित विस्तृत आकस्मिक विपत्र में कुल 9155.44 करोड़ की 20642 एसी विपत्रों से आहरित राशि मार्च 2020 तक डीसी बिल के और प्रस्तुतीकरण के कारण लंबित था. अग्रिम का लंबी अवधि तक और असमायोजित रहना दूरविर्नियोजन विनियोजन के जोखिम से भरा होता है।