परवेज़ अख्तर/सीवान:- विश्व होम्योपैथी दिवस पर शहर के नगर थाना स्थित डॉक्टर्स कालोनी में जिला होम्योपैथी संघ के पूर्व अध्यक्ष डा• दयानंद सिंह की अध्यक्षता में होम्योपैथी के जनक डा• फ्रेडरिक सैम्युअल हैनिमैन की 263वीं जयंती मनायी गयी। इस अवसर पर डा• मधुसूदन प्रसाद ने कहा कि इनका जन्म 10 अप्रैल 1975 को जर्मनी के सैक्सन राज्य के माईसेन नगर में हुआ था। मात्र 24 वर्ष की अवस्था में ही इन्होंने डाक्टरी में एम•डी• की उपाधि प्राप्त कर ली थी। डा•राजेंद्र प्रसाद सिंह ने कहा कि वे जर्मन, फ्रेंच ग्रीक, लेटिन, हिब्रू, अरबी आदि अनेक भाषाओं के जानकार थे।जिसके कारण उन्हें रेक्टर कहा जाता था। डा•अब्दुल फिरोज ने कहा कि भारत का हर पांचवां व्यक्ति होम्योपैथ चिकित्सक के पास अपना चिकित्सा करा रहा है। वह भी तब जब सरकार द्वारा केवल एलोपैथी को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। डा•अरफा वारसी ने कहा कि होम्योपैथी समोपचार सिद्धांत पर कार्य करती है।इसकी दवा केवल क्रिया करती है,प्रतिक्रिया नहीं। वहीं डा• कन्हैया शर्मा ने बताया कि होम्योपैथी के बारे में आम जन में यह गलत धारणा है कि यह देर से फायदा करती है। दरअसल नवीन रोगों में बहुत कम लोग होम्योपैथ के पास जाते हैं।ज्यादातर पुराने और असाध्य रोगी इस पैथ में आते थे।परंतु अब प्रवृत्ति बदल रही है।
बहुत दिलचस्प है होम्योपैथी का जन्म
डा •दयानंद सिंह ने होम्योपैथी के जन्म की कहानी कहते हुए कहा कि 10 वर्षो की एलोपैथी चिकित्सा के दौरान एलोपैथ दवाईओं के दुष्प्रभाव से चिंतित होकर इस पद्धति को छोड़कर अनुवादक का कार्य करने लगे। 1970 में वे कलेन के अंग्रेजी मैटेरिया मेडिका का जर्मन भाषा में अनुवाद कर रहे थे कि एक पंक्ति पढ़ी। जो कि सिनकोना के विषय में था। इसके बारे में था कि इसे स्वस्थ शरीर में सेवन कराने से बुखार आ जाता है और यह बुखार को भी ठीक करता है।इस परस्पर विरोधी बातों पर शोध करते-करते इन्होंने विश्व को होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति को जन्म दिया जो कि बिना दुष्प्रभाव के अपनी चिकित्सा करती है। आज के परिप्रेक्ष्य में यह सर्वमान्य चिकित्सा पद्धति है। लेकिन इस पद्धति पर दवा कंपनियों और सरकार की टेढ़ी नजर है।जिसके कारण सस्ती और सुलभ दवाएं दिन-प्रतिदिन महंगी होती जा रहीं हैं। होम्योपैथी दवाएं एक्सपायर नहीं होतीं लेकिन कंपनियों के दबाव में अब इसे भी एक्सपायर्ड मानने का प्रचलन सरकार ने शुरू कर दिया है। इस पर आम जन को भी सोंचने की जरूरत है।क्योंकि सस्ती दवाओं को महंगा करने का षडयंत्र चल रहा है। मौके पर कामरेड बदरे आलम,डा•विजय शर्मा, कामरेड जगदीश यादव उपस्थित थे।