पटना: कोरोना संक्रमण के प्रसार को वर्तमन समय में दरकिनार नहीं किया जा सकता. वैज्ञानिक शोध से लेकर सरकारी दिशानिर्देशों तक सभी जगह कोरोना संक्रमण को सदी की सबसे गंभीर महामारी का तमगा भी मिल चुका है. वैश्विक स्तर पर यह पहली दफ़ा ही होगा जब लोग अचानक किसी संक्रमण के भय से सहम कर घरों में रहने को मजबूर हुए हों. इन तमाम मुश्किलों के बीच कुछ सकारात्मक पहल भी हुए जो व्यक्तिक स्तर से सामुदायिक स्तर तक बड़े बदलाव का साक्षी भी बना. यह बदलाव लोगों के व्यवहार परिवर्तन से शुरू होकर सामुदायिक बदलाव की कड़ी को जोड़ने में भी सफल रहा. कोरोना से बचाव के उपायों को अपनाकर लोगों ने यह साबित कर दिखाया कि चुनौती चाहे जितनी भी बड़ी हो सजगता उसका एक सशक्त समाधान हो सकता है. कोरोना अपने कदम शहरों के रास्ते गाँवों की कच्ची गलियों में भी बढ़ाता दिखा. कई लोगों के मन में यह आशंका भी उठी कि यदि कोरोना का रुख गाँवों की तरफ हुआ तो इसके प्रसार को रोकना सरकार के लिए एक गंभीर चुनौती हो सकती है. लेकिन कोरोना के कदम गाँवों की कच्ची पगडंडियों पर संतुलन बनाने में नाकामयाब रहे. कोरोना गाँव में प्रवेश तो किया, लेकिन लोगों की एकजुटता के सामने कोरोना को अपनी हार स्वीकार करनी पड़ी. इसके पीछे कई वजह थे. समुदाय के लोगों को कोरोना के प्रति जागरूक करने की ज़िम्मेदारी सरकार की तरफ़ से आंगनबाड़ी सेविका, सहायिका, आशा एवं एएनएम को दी गयी. यह सिर्फ़ जिम्मेदारी तक सीमित नहीं रहा, बल्कि क्षेत्रीय स्तर पर कार्य करने वाली कार्यकर्ताओं ने इसे एक चुनौती की तरह स्वीकार भी किया. कारण यह भी था कि उन्हें सिर्फ अपने समुदाय को सुरक्षित नहीं करना था, बल्कि ख़ुद को भी सुरक्षित करते हुए अपने परिवार को भी सुरक्षा प्रदान करनी थी.
महिलाओं को जागरूक करना असरदार हुआ साबित
यदि ग्रामीण परिवेश की बात करें, तब आज भी महिलाओं की अपनी पहचान स्थापित करने की क़वायद बादस्तूर जारी है. लेकिन कोरोना काल में इन्हीं महिलाओं की जागरूकता ने कोरोना के प्रसार को रोकने की पहल भी की. लॉकडाउन के बाद आंगनबाड़ी केंद्र बंद करने पड़े एवं आईसीडीएस सेवाओं को बाधित होने से बचाने के लिए आंगनबाड़ी सेविका एवं सहायिका घरों का दौरा करना शुरू की. यह अवधि काफ़ी महत्वपूर्ण साबित हुयी. गृह भ्रमण के दौरान आंगनबाड़ी सेविकाओं ने महिलाओं के साथ काफ़ी समय व्यतीत किया, जिससे महिलाओं में कोरोना के विषय में जागरूकता भी बढ़ी एवं कोरोना से बचाव के उपायों के विषय में उनकी गंभीरता भी. महिलाओं की यह जागरूकता कारगर साबित होती दिखी. महिलाओं ने घरों से अपने बच्चों को निकलने से रोका एवं अपने घर के पुरुषों को भी मास्क, हैण्ड वाशिंग एवं शारीरिक दूरी की जरूरत पर चर्चा करना शुरू की. यह पहली दफ़ा था, जब पुरुष महिलाओं के सुझाव को तवज्जो देने पर मजबूर हुए. वहीं दूसरी तरफ़, जीविका दीदियाँ भी मास्क निर्माण कार्य में जुट गयी थी. यह सिर्फ एक महिला द्वारा मास्क निर्माण नहीं था, बल्कि कोरोना रोकथाम में महिलाओं की भूमिका की पटकथा भी तैयार कर रहा था. यही वह कड़ी थी, जहाँ गाँव में कोरोना के प्रति बचाव की बयार चलनी शुरू हुयी जो आज भी जारी है.
लोगों को देखकर बदलता है सुरक्षा का अर्थ
यह सत्य है कि अभी भी कोरोना का खतरा कमा नहीं है. कोरोना के बढ़ते मामले रोज इसकी पुष्टि भी करते हैं. लेकिन धीरे-धीरे कहीं न कहीं लोगों की सोच से कोरोना का भय निकलता भी जा रहा है. सड़क पर चलने वाले लोगों के मास्क इस्तेमाल में कमी महसूस की जा रही है. ये संकेत खतरनाक परिणाम दे सकते हैं. बात यह भी है कि लोग आस-पास के लोगों को देखकर भी कोरोना के खतरे का अनुमान लगाने लगते हैं. याद रखें आपके चेहरे से हटने वाले मास्क आपके सामने वाले लोग को यह भी सन्देश देते हैं कि कोरोना का संक्रमण अब खत्म हो चुका है. आपका मास्क पहनना, हाथों की लगातार सफाई करना एवं शारीरिक दूरी को अपनाना आपके सामने वाले व्यक्ति को भी कोरोना संक्रमण के प्रति आगाह करता है. इसलिए कोरोना को रोकने में आपकी सजगता सबसे अधिक महत्वपूर्ण है.
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