पटना: बिहार बोर्ड की 12वीं का परिणाम घोषित हो गया है। कई ऐसे छात्र हैं, जिन्हें बाहरवीं की परीक्षा में उम्मीद से कम अंक आए हैं। कुछ सफलता के पायदान को छूकर फिसल गए हैं। ऐसे छात्र बिल्कुल निराश न हों। ये अंतिम पड़ाव नहीं है। जीवन में अभी कई अवसर बाकी हैं, जहां आप अपनी प्रतिभा की छटा बिखेर सकते हैं। किसी विषय में कम या अधिक अंक लाने से आपकी योग्यता का आकलन नहीं किया जा सकता, बल्कि इससे यह पता चलता है कि आपकी किस विषय में कितनी रुचि है। अभिभावकों को भी इसका ख्याल रखना चाहिए और कम अंक लाने पर डांट-फटकार करने के बजाय उनके साथ प्यार से पेश आना चाहिए। ऐसा विशेषज्ञों का मानना है।
मनोरोग चिकित्सक डॉ. बिंदा सिंह कहती हैं, जरूरी नहीं कि 90 फीसद लाने वाले सभी विद्यार्थी सफलता के शीर्ष पर बैठे हैं। अक्सर ऐसा देखा गया है कि औसत अंक लाने वालों ने ऐसी छलांग लगाई है, जिसे देखकर उनके घरवाले भी अचंभित रह गए। समाज में कई उदाहरण है, जो दसवीं और बाहरवीं में फेल हो गए थे। उन्होंने अपनी कमियों को समझा। उसे दूर किया और लक्ष्य की प्राप्ति की। इस लिए स्कूल-कॉलेज की शिक्षा और परीक्षा को जीवन का अंतिम पड़ाव नहीं मानना चाहिए। अभ्यास से अवसर मिलते हैं।
डॉ. सिंह कहती हैं, कोरोना काल में जब स्कूल कॉलेज बंद रहे, तब भी अगर किसी छात्र को कम अंक आए तो उसे समझना चाहिए कि वो रेगुलर स्टडीज करता रहता तो और ज्यादा नंबर आ सकते थे। इसमें उसकी कोई गलती नहीं है। उसे बैठकर अपनी क्षमता का आकलन करना चाहिए कि कमी कहां रह गई थी और इसे कैसे दूर किया जाए? उनके अभिभावकों को भी समझना चाहिए कि समाज और रिश्तेदारों के बीच बेटे/बेटी की सफलता का ढिंढोरा पीटने से अगर वे वंचित रह गए तो इसकी खीज बच्चे पर न उतारें। सस्ती लोकप्रियता बेटे/बेटियों के लिए आगे का अवसर बंद कर सकती हैं। उन्हें बच्चों को समझाना चाहिए कि वे निराश न हों। अगली परीक्षा के लिए अच्छी तरह मेहनत करें, ताकि कोई चूक न रह जाए।
अभिभावकों को परीक्षा परिणाम घोषित होने के बाद बच्चों के व्यवहार पर भी गौर करते रहना चाहिए। अगर बच्चा अकेले में ज्यादा रहना पसंद करे, कमरे को अंदर से बंद कर ले, अंधेरे में बैठ जाए या फिर अब मुझे नहीं जीना जैसे वाक्य कहे, ताे उसे नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। अक्सर मां-बाप समझते हैं कि बच्चा उन्हें डराने की कोशिश कर रहा है, जबकि ऐसा हमेशा ऐसा नहीं होता। अधिकांश बच्चे तब ऐसा कहते हैं, जब वे खुद डरे हाेते हैं। ऐसे में उन्हें कभी अकेला न छोड़ें और लाड-प्यार से पढ़ाई का महत्व समझाएं।
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