छपरा: सुरक्षित प्रसव को बढ़ावा देने व मातृ-शिशु मृत्यु दर में कमी लाने के लिए स्वास्थ्य विभाग कृतसंकल्पित है। सुरक्षित प्रसव के लिए स्वास्थ्यकर्मियों का क्षमतावर्धन किया जा रहा है। इसी कड़ी में बुधवार को सदर अस्पताल में 12 दिवसीय प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया गया। अमानत ज्योति कार्यक्रम के तहत सदर अस्पताल के प्रसव कक्ष में कार्य करने वाली 6 नर्सो को प्रशिक्षित किया जा रहा है। सदर अस्पताल के डीएमटी अलका कुमारी, अर्चना कुमारी एवं केयर इंडिय के एनएमएस अर्चना दास के द्वारा प्रशिक्षिण दिया गया। प्रशिक्षण दे रही केयर इंडिया के अमनात एनएमएस अर्चना दास ने कहा इस प्रशिक्षण का उद्देश्य मातृत्व और नवजात शिशुओं से संबंधित समस्याओं की जानकारी देना है। महिलाओं के प्रसव के समय जानकारी रहने पर एएनएम बेहतर परामर्श और देखभाल कर सकती है। गंभीर एवं आपातकालीन परिस्थिति में र चिकित्सकों को सूचित कर उनकी सलाह के आधार पर प्रसूता स्थिति में सुधार लाया जा सकता है।
प्रशिक्षण में किया गया नर्सों का स्किल डेवलपमेंट
सदर अस्पताल के डीएमटी अलका कुमारी ने बताया जीएनएम को प्रशिक्षित करने का एक और मुख्य उद्देश्य यह है कि आने वाले दिनों में सभी तकनीक में दक्ष जीएनएम नर्स किसी भी विभाग में बिना बाधा के काम कर सके। साथ ही, किसी भी विभाग में काम करने के दौरान आसानी से मरीजों में होने वाली परेशानी को पहचान कर उसका सही तरीके से इलाज कर पाएंगी। इसके लिए ओरिएंटेशन ट्रेनिंग प्रोग्राम से जीएनएम नर्सों का प्रदर्शन के साथ स्किल डेवलपमेंट किया जाता है। सिमुलेशन ट्रेनिंग में उन्हें पीपीई डोनिंग एंड डोफिंग, हैंड वाशिंग, वाइटल मॉनिटर, बीपी- पल्स रेट, टेम्परेचर चेकिंग, ऑक्सीजन लगाना, इंजेक्शन लगाना, कैथेटर लगाना, ऑटो क्लेव लगाना, लेबर रूम व्यवस्थित करना एवं मरीजों में होनी वाली जटिलताओं को पहचानने और उसे दूर करने के बारे में बताया गया है। साथ ही, उन्हें अस्पताल से निकलने वाले बायोमेडिकल वेस्ट का प्रबंधन करने की भी जानकारी दी गई है।
सही समय पर प्रसव की जटिलताओं की पहचान जरूरी
केयर इंडिया के बीएम अमितेश कुमार ने बताया प्रसव के दौरान आने वाली जटिलताओं को पूर्व ही समाप्त किया जा सकता है लेकिन इसके लिए उन जटिलताओं का समय पर पहचान जरूरी है। ओरिएंटेशन ट्रेनिंग प्राप्त जीएनएम नर्स सुरक्षित संस्थागत कराने में अहम भूमिका अदा करेगी। जीएनएम नर्सों को लेबर रूम और ऑपरेशन थियेटर से सबंधित सभी आवश्यक तकनीकी पहलुओं से अवगत कराया गया है। ताकि वह इन स्थानों पर मरीजों में होने वाली जटिलताएं पहचान कर, उसका सही समय पर समुचित इलाज कर सके। इस प्रशिक्षण के बाद मातृ-शिशु स्वास्थ्य को सुनिश्चित करने के साथ-साथ मातृ-शिशु मृत्यु दर को भी कम करने में मदद मिलेगी।
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