छपरा: जिले में टीबी उन्मूलन के लिए विभाग कृत संकल्पित है। वैश्विक महामारी कोरोना काल में भी टीबी के मरीजों को बेहतर सेवा उपलब्ध करायी जा रही है। इसी कड़ी में अब विशेष अभियान चलाने का निर्णय लिया गया है। गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों में टीबी का स्क्रिनिंग की जाएगी। इसको लेकर केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के संयुक्त सचिव पी. अशोक बाबू ने पत्र जारी कर आवश्यक दिशा-निर्देश दिया है। जारी पत्र में कहा गया है कि गंभीर कुपोषण से पीड़ित पांच साल से कम उम्र के बच्चों को उपचार और पोषण संबंधी सहायता प्रदान करने के लिए पोषण पुनर्वास केंद्र (एनआरसी) देश भर में सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में कार्य कर रहे हैं। क्षय रोग (टीबी) और अल्प-पोषण को अक्सर आपस में जोड़ा जा सकता है, इस प्रकार, टीबी किसी भी प्रकार के अल्प-पोषण से जुड़ा हो सकता है। टीबी मुक्त भारत पहल के मद्देनजर, नैदानिक अभिव्यक्ति और पारिवारिक इतिहास के आधार पर, सभी एनआरसी में भर्ती कुपोषित बच्चों को टीबी के लिए स्क्रीनिंग करना महत्वपूर्ण है। 2025 तक टीबी उन्मूलन लक्ष्य को प्राप्त करने की कुंजी है, इसलिए स्वास्थ्य संस्थानों, विशेष रूप से उच्च टीबी की घटनाओं वाले जिलों में अति-गंभीर कुपोषित (एसएएम) त बच्चों में टीबी की जांच सुनिश्चित करें।
टीबी के लक्षणों को अनदेखा न करें
सिविल सर्जन डॉ. जेपी सुकुमार ने कहा कि ‘बच्चों में टीबी के लक्षण जान पाना और उसका इलाज कर पाना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। क्योंकि बच्चों में वयस्कों की तुलना में रोग प्रतिरोधक क्षमता काफी कम होती है। बच्चों का अपनी उम्र के हिसाब से ऊँचाई का कम बढ़ना या वजन में कमी होना टीबी के लक्षण हो सकते हैं। अगर बच्चों में भूख, वजन में कमी, दो सप्ताह से अधिक खांसी, बुखार और रात के समय पसीना आने जैसी समस्या हो रही है, तो इसे अनदेखा न करें। ये टीबी के लक्षण हो सकते हैं।’
कुपोषित बच्चों में टीबी होने का खतरा अधिक
सिविल सर्जन ने बताया कि टीबी एक संक्रामक रोग है जो संक्रमित व्यक्ति के खांसने या छींकने से फैलता है। कुपोषित बच्चे भी टीबी के शिकार हो जाते हैं। स्वस्थ बच्चे जब टीबी संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आते हैं तो वह भी बीमार हो जाते हैं। यदि बच्चे को दो हफ्ते या उससे ज्यादा समय से लगातार खांसी हो रही हो तो जांच कराना आवश्यक है। उन्होंने कहा कि 12 साल से कम उम्र के बच्चों में बलगम नहीं बनता है। इस कारण बच्चों में टीबी का पता लगाना मुश्किल होता है। बच्चे की हिस्ट्री और कांटैक्ट ट्रेसिग के अनुसार ही सैंपल जांच के आधार पर ही टीबी का पता लगाया जाता है।
बच्चों का टीबी से बचाव
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