परवेज अख्तर/सिवान: अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लोगों को एकजुट करने और आजादी का अलख जगाने पहली बार सन 1927 महात्मा गांधी यहां आए थे। बापू के ओजस्वी और प्रभावी भाषण को सुनने के लिए जिले के मैरवा में काफी संख्या में भीड़ इकठ्ठी हुई थी। इसका व्यापक प्रभाव भी देखने को मिला था। वहीं दूसरी तरफ लोगों द्वारा आदर व सम्मान पाकर बापू भी अपने आप को नहीं रोक सके थे। सन 1927 के बाद बापू 1930 और 1942 में भी यहां आए। सन 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान मैरवा में बापू ने एक सभा को संबोधित किया था। बाद में उस स्थल पर एक चबूतरा का निर्माण किया गया। गांधी आश्रम में बना यह चबूतरा आजादी की लड़ाई में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाया। इस चबूतरे को आजादी के संघर्ष की योजना बनाने का केंद्र बिन्दू के रूप से जाना जाता है। वर्तमान समय में यह चबूतरा मैरवा के नौतन मोड़ के समीप स्थित है। जहां परिसर में बच्चों को शिक्षित करने के लिए स्कूल का निर्माण कराया गया है और करीब दो वर्ष पूर्व चबूतरे पर बापू की प्रतिमा लगायी गयी है।
एक साथ सैंकड़ों लोगों ने नशा त्याग करने की खायी थी कसम
बापू के सभा संबोधन का असर का अंदाजा सिर्फ इतने से लगाया जा सकता है कि एक साथ सैकड़ों लोगों ने नशा त्याग करने की शपथ ले लिया। कहा यह भी जाता है कि सन 1942 में लंगडपूरा के रामदेनी कुर्मी एक दरोगा से भिड़ गये थे। जिसके बाद उनको गोली मार दिया गया। इसके बाद नाराज लोगों ने रेलवे का ट्रैक उखाड़ दिया था। पोस्ट आफिस में कुछ लोगों के द्वारा आग लगा दी गयी थी।
मोहम्म्द हुसैन ने आश्रम के लिए जमीन दान में दी थी
आश्रम के लिए जमीन एक मुस्लिम परिवार ने दान में दिया था। जमीन दान में देने वाले परिवार के सदस्य और 1944 में जन्में हासिम आज भी पुराने दिन को याद करते हुए भाउक हो उठते हैं। हासिम बताते हैं कि उनके दादा मोहम्मद हुसैन उर्फ चिरकुट जोलहा ने आजादी के किस्से परिवार के सदस्यों को सुनाया करते थे। जिसमें गांधी जी का यात्रा और लोगों पर उसका असर भी शामिल था। गांधी जी यहां आने के बाद आश्रम में बने एक कमरे में ठहरते थे।
सन 1926 में बसंतपुर आने की भी बात बताते हैं लोग
जिले में बापू की यात्रा को लेकर कई बातें सामने आती हैं। बताया जाता है कि जिले के आजादी के संघर्ष के दिनों में बापू जिले के दरौली, मैरवा व बसंतपुर में भी आए थे। बुजूर्ग बताते हैं बसंतपुर के बड़वा निवासी व जमींनदार कपिलदेव सिंह को बापू के आगमन की जानकारी थी। देशरत्न राजेंद्र प्रसाद के साथ बापू मोतीहारी से आने के क्रम में खोरीपाकड़ स्कूल पर भी आए थे। जहां एक झोपड़ी में ठहरे थे।
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