नागरिक अधिकार और सरकारी कर्तव्य हर व्यक्ति जानें
परवेज अख्तर/सीवान:
ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन के तत्वावधान में शुक्रवार को गांधी मैदान में आयोजित छात्र जनसभा को संबोधित करने जेएनयू के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष और बेगूसराय से लोकसभा चुनाव में प्रत्याशी रहे कन्हैया कुमार भी आए थे. भारत रत्न डा. राजेंद्र प्रसाद और मौलाना मजरूल हक की जन्म भूमि को नमन करने के बाद उन्होंने अपना संबोधन प्रारंभ किया.
कन्हैया कुमार ने शाहिर लुधियानवी की जन्मशती के मौके पर उन्हें याद करते हुए उनके दो शेर गुनगुनाए- ये महलों, ये तख्तों, ये ताजों की दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या हो? और- मैं पल दो पल का शायर हूं, पल दो पल मेरी कहानी है. दरअसल शाहिर लुधियानवी जिस गवर्नमेँट कॉलेज में पढ़ते थे उस कॉलेज से उन्हें निष्कासित कर दिया गया था लेकिन आज उनकी जन्म शती पर उसी कॉलेज में उनकी प्रतिमा लगी है. यह कर्म प्रधान समाज का पर्याय और सबूत है शायद यही बताना कन्हैया कुमार का उद्देश्य था.
उन्होंने कहा कि देशद्रोह का आरोप झेलने वाले हम लोग कुछ भी कहेंगे करेंगे उस पर तो सबकी नजरें रहेंगी ही. हम नागरिक है इसका आभास सरकार को तभी हो सकेगा जब आप हम सरकार से सवाल पूछेंगे. उससे हमें पूछने का हक है कि वह शिक्षा, रोजगार और देश को कहां लेकर जा रहा है. उन्होंने साढ़े आठ हजार करोड़ रुपये में खरीदे गए स्पेशल पीएम विमान के औचित्य पर सवाल भी उठाया और कहा कि यह जनता का पैसा है. उन्होंने बिहार के लोगों का आह्वान करते हुए कहा कि यहां के लोग भले ही आलूआ खाते हों लेकिन दिमाग तो इतना रखते हैं कि देश के विचलन पर सरकार से सवाल पूछ सकें. उन्होंने शंकराचार्य को शास्त्रार्थ में हराने वाले मंडन मिश्र का नाम लिया तो अपने दमखम से पहाड़ को काटकर सड़क बनाने वाले दशरथ मांझी को भी याद किया. उन्होंने सोशल मीडिया पर चल रहे चर्चा पर सवाल उठाते हुए कहा कि सरकार से सवाल पूछने वालों पर पत्थर फेंका जाता है और सोशल मीडिया पर गालियों और बद्दुआओं की झड़ी लगा दी जाती है. उन्होंने सवाल किया क्या इससे उन युवाओं को रोजगार मिल सकेगा? उन्होंने विभिन्न प्रतियोगी परीक्षा समय से नहीं होने और होने पर समय पर नौकरी नहीं देने का भी मामला उठाया. देश और राजनीति में परिवारवाद उन्हें केवल अमित शाह के बेटे जय शाह के बीसीसीआई अध्यक्ष बनने में दिखा और कहीं दिखाई नहीं दिया.
दो जिलों में डीएम रहे और सरकारी नौकरी से इस्तीफा देकर जन आंदोलन से जुड़े के. गोपीनाथन ने कहा कि हमें प्रजा और नागरिक में अंतर को समझना होगा. हालांकि सरकार ने अभी उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं किया है. अगर हम अपने नागरिक समझते हैं तो अपने हक और अधिकार के लिए सरकार से सवाल पूछना पड़ेगा और अगर प्रजा समझते हैं तो सरकार जो कहे उसे आदेश मानकर पीछे-पीछे चलना होगा. उन्होंने अधिकार, समझ और सही गलत के पहचान का अंतर समझाया और कहा कि दो जिलों में डीएम रहने के दौरान मुझे आभास हुआ कि लोग मुझसे सीधे आकर क्यों नहीं अपनी समस्या बताना चाहते हैं.
इसके अलावा राज्य एआईएसएफ के अध्यक्ष रंजीत पंडित ने सरकार और लोगों के बीच के अधिकार और कर्तव्य पर चर्चा की और लोगों से अपने अधिकार के लिए आने की अपील की. उन्होंन समान शिक्षा व्यवस्था को जमीन पर उतारने के लिए संघर्ष का रास्ता चुनने की भी बात कही. मंचासीन नेताओं में कॉमरेड मुंशी सिंह, सुशील कुमार, रविंद्र सिंह, अजय सिंह, बिल्टू सिंह, सिफ्तुल्लाह उर्फ गोरख नेता आदि थे.
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