परवेज़ अख्तर/सिवान:
रामविलास पासवान दलित राजनीति के प्रमुख नेताओं में से एक रहे।पासवान का जन्म 5 जुलाई 1946 को बिहार के खगड़िया जिले के शहरबन्नी गांव में हुआ था.1960 के दशक में राजकुमारी देवी से शादी की. 2014 में उन्होंने खुलासा किया कि लोकसभा नामांकन पत्रों को चुनौती देने के बाद उन्होंने 1981 में उन्हें तलाक दे दिया था. उनकी पहली पत्नी उषा और आशा से दो बेटियां हैं।सरकार कोई भी हो, राम विलास पासवान मंत्री जरूर रहे. पूर्व पीएम विश्वनाथ प्रताप सिंह,एच डी देवगौड़ा, इंद्र कुमार गुजराल, मनमोहन सिंह, अटल बिहारी वाजपेयी और नरेन्द्र मोदी के मंत्रिपरिषद् में रामविलास पासवान ने केंद्रीय मंत्री के रूप में काम किया. पासवान पहली बार 1969 में बिहार के विधानसभा चुनावों में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के रूप चुने गए थे. 1974 में जब लोक दल बना तो पासवान उससे जुड़ गए और महासचिव बनाए गए.1974 में आपातकाल का विरोध करते हुए पासवान जेल भी गए।1977 में छठी लोकसभा में पासवान ने जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव जीता.
1982 में हुए लोकसभा चुनाव में पासवान दूसरी बार जीते. इसके बाद पासवान 1989 और 1996 में हुए लोकसभा चुनावों में भी जीते. बारहवीं, तेरहवीं और चौदहवीं लोकसभा में भी पासवान विजयी रहे और केंद्र की सरकारों में मंत्री भी रहे. लेकिन अगस्त 2010 में हुए 15वीं लोकसभा के चुनाव में पासवान को हार का सामना करना पड़ा. अगस्त 2010 में बिहार से राज्यसभा के सदस्य निर्वाचित हुए और कार्मिक तथा पेंशन मामले और ग्रामीण विकास समिति के सदस्य बनाए गए. फिलहाल वे राज्यसभा सदस्य थे.बतादें कि रामविलास पासवान ने साल 2000 में जनता दल यूनाइटेड (जदयू) से अलग होकर एलजेपी बनाई साथ ही एनडीए में भी शामिल रहे और मंत्री भी बने.पासवान ने 2002 के गुजरात दंगों के मसले पर एनडीए से नाता तोड़ लिया था.
2004 के लोकसभा चुनाव के पहले उन्होंने तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की पहल पर एनडीए विरोध का मोर्चा संभाल लिया.आगे रामविलास पासवान 2004 में यूपीए में शामिल होकर केंद्र की मनमोहन सिंह सरकार में मंत्री बने. 2009 में पासवान को कांग्रेस से किनारा करना महंगा पड़ा. इस दौर में एलजेपी का तो सफाया हुआ ही, रामविलास पासवान भी अपने सियासी गढ़ हाजीपुर में चुनाव हार गए.2014 के लोकसभा चुनाव से पहले एनडीए व यूपीए, दोनों के दरवाजे पासवान के लिए खुले थे. वक्त की नजाकत भांप पासवान ने एनडीए का रूख किया. चुनाव में एनडीए की जीत के बाद वे मंत्री बने. आगे 2019 के लोकसभा चुनाव में भी वे एनडीए के साथ रहे।
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