छपरा: किसी बड़े बदलाव की सफ़लता समाज की सोच पर निर्भर करती है जिसे उस समाज की सामाजिक, आर्थिक एवं भगौलिक संरचना काफ़ी हद तक प्रभावित करती है। जिला मुख्यालय से 40 किलोमीटर दूर दरियापुर प्रखंड के अंतर्गत दरिहारा भुआल पूर्वी हरिजन टोला भी आज उस बदलाव की साक्षी बना है, जो कभी अपनी सामाजिक, आर्थिक एवं भगौलिक संरचना के ताने बाने को तोड़ने में असफ़ल हो रही थी। आज इस इलाके में आपको हरेक घरों में माताएं अपने बच्चों को आंगनबाड़ी केंद्र जाने के लिए तैयार करती दिख जाएंगी। यहाँ के आंगनबाड़ी केंद्र पर अन्नप्राशन कराने के लिए माताओं के साथ बच्चों के पिता की आवाज भी सुनाई देगी। बहू की गोदभराई में सास के शोहर की गीत केंद्र के हर कोने में सुनी जा सकती है। लेकिन महज इसे प्रत्येक आंगनबाड़ी केंद्र पर होने वाली सामान्य गतिविधि से जोड़कर देखना हमारी भूल हो सकती है। इस क्षेत्र की आर्थिक और सामाजिक संरचना इस बात की पुष्टि करते हैं कि यहाँ तक पहुंचने में इस क्षेत्र की आंगनबाड़ी सेविका आरती को कितनी चुनौतियों का सामना करना पड़ा होगा। इस बदलाव का जिक्र करती दरियापुर प्रखंड के अंतर्गत दरिहारा भुआल पूर्वी हरिजन टोला(आंगनबाड़ी केंद्र संख्या-199) की सेविका पुष्पांजली की आँखों में किसी सपने के सच होने की खुशी आसानी से देखी जा सकती है।
आंगनबाड़ी सेविका से समुदाय का हिस्सा बनने पर मिली सफ़लता
पुष्पांजली कहती हैं- “यह सच है कि आज पोषण पर घर-घर अलख जगी है। लेकिन मैंने तो वह दौर भी देखा है जब मेरे आंगनबाड़ी केंद्र में सन्नाटा रहता था। इक्के-दुक्के बच्चे कभी -कभी केंद्र में दिखते थे। बात बच्चों की केंद्र पर आने की नहीं थी, बल्कि लोगों के मन में आंगनबाड़ी केंद्र की उपयोगिता ही स्पष्ट नहीं थी। इस क्षेत्र में गरीबी और अशिक्षा ऐसे बाधक थे जो किसी भी सूरत में पोषण एवं शिक्षा को प्राथमिकता देने को तैयार नहीं थे। मैंने तब भी हार नहीं मानी। मैं लोगों के व्यवहार परिवर्तन करने की कोशिश में जुट गई। व्यवहार परिवर्तन करना इतना सरल नहीं था। इस क्षेत्र की सामाजिक संरचना उन पुराने अनुभवों की नीव पर खड़ी थी जहाँ बुनियादी जरूरतों की सूची में पोषण और शिक्षा का नाम ही दर्ज नहीं था। मैंने अपने क्षेत्र के सभी घरों का दौरा कई बार किया। तब जाकर मुझे एहसास हुआ कि संसाधनों की कमी व्यवहार परिवर्तन में उतनी बाधक नहीं है, बल्कि उनके स्तर पर जाकर उनकी मुश्किलों को समझने की अधिक जरूरत है। फिर क्या था, मैं अब एक आंगनबाड़ी सेविका से उनकी तरह एक सामान्य महिला बनकर इस मुहिम को आगे बढ़ाई। बच्चों की शिक्षा की जरूत, बच्चों एवं गर्भवती की पोषण पर निरंतर चर्चा करने के कारण उनके व्यवहार परिवर्तन की कड़ी जोड़ने में मुझे सफलता मिलती गयी। यह संभव इसलिए होता चला गया, क्योंकि मैं आंगनबाड़ी सेविका से निकलकर उनके बीच का एक हिस्सा बन गयी थी’’।
व्यवहार परिवर्तन करने में मिला अन्य लोगों का सहयोग
यह व्यवहार का एक हिस्सा ही था जो गाँव में आंगनबाड़ी केंद्र होने के वाबजूद भी बच्चे पढने के लिए आंगनबाड़ी केंद्र नहीं जाते थे। पोषण पर जब भी किसी तरह की चर्चाएं आंगनबाड़ी सेविका द्वारा की जाती तो लोगों की उसमें भागीदारी भी नहीं होती थी। इस पर सेविका पुष्पांजली ने कार्य करना शुरू किया। इसके लिए उन्होंने अपने वार्ड सदस्यों को सामुदायिक बैठक में शामिल करना शुरू की, जिससे गाँव के लोगों का रुझान पोषण की तरफ बढ़ने लगा। दूसरी तरफ घर-घर जाकर बच्चों के आंगनबाड़ी केंद्र आने की उपयोगिता पर भी माता-पिता को जानकारी देना शुरू की। उनका यह प्रयास सफ़ल रहा है एवं अब आंगनबाड़ी केंद्र में बच्चों की संख्या में भी बढ़ोतरी हुयी है। पुष्पांजली ने बताया उनके पोषक क्षेत्र में टीकाकरण की दर भी बहुत कम थी। अभिभावक अपने बच्चों को टीका लगवाने में कोई रूचि नहीं दिखाते थे। लेकिन अब नजारा बदल गया है। माता-पिता बच्चे के टीकाकरण की तारीख याद रखते हैं एवं उनसे इस विषय में जानकारी भी लेते हैं। इसका परिणाम यह है कि उनके पोषण क्षेत्र का शत-प्रतिशत सभी बच्चों का टीकाकारण हो रहा है।
सेविका की पहल हुई कारगर
सामुदायिक पोषण स्तर में सुधार लाने के लिए पुष्पांजली ने बच्चों, गर्भवती एवं धात्री महिलाओं के साथ किशोरियों के व्यवहार परिवर्तन पर बल दिया। स्वच्छता सुपोषण की आधारशिला तैयार करती है। इसे ध्यान में रखते हुए पुष्पांजली साफ़-सफाई की महत्ता पर चर्चा ही नहीं करती, बल्कि हाथ धुलाई की 10 विधियों का प्रदर्शन कर बच्चों को साफ-सफाई के प्रति जागरूक भी करती हैं। उनकी यह मेहनत कारगर साबित हुई है। आज उनके पोषक क्षेत्र के बच्चे स्वच्छता का पाठ पढ़ रहे हैं। साफ़-सुथरे कपड़े पहनकर नियमित यूनिफॉर्म में आने वाले ये बच्चे स्वच्छता के संदेश की सामुदायिक प्रसार की तरफ इशारा करती है।
रोल मॉडल बनी पुष्पांजली
दरिहारा पंचायत के वार्ड 12 के विकास मित्र अरुण कुमार राम ने सेविका पुष्पांजली के कार्यों की सराहना करते हुए कहते हैं, पुष्पांजली सेविकाओं के बीच एक रोल मॉडल है। जनसमुदाय के बीच प्रभावी रूप से पोषण संदेश फैलाने एवं लोगों को जागरूक करने में वह कामयाब रहीं है, जिसके कारण इस क्षेत्र में बच्चों, किशोरियों, गर्भवती महिलाओं एवं धात्री माताओं के पोषण स्तर में सुधार दिख रहा है।
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