परवेज़ अख्तर/सिवान:
पश्चिमी बिहार में यूपी बॉर्डर से सटा जिला है सिवान. इस जिले ने देश को पहला राष्ट्रपति दिया.देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद का जन्म सिवान जिले के जीरादेई में हुआ था.वे दुनिया भर में अपनी विद्वता और स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका के लिए जाने जाते थे.उनके कारण सिवान जिले का नाम पूरे देश में हुआ लेकिन आज बिहार का सिवान जिला अपराध, राजनीति में अपराधियों के दबदबे, गैंगवार और बाहुबलियों के इलाकों और वर्चस्व की जंग के लिए पूरे देश में बिख्यात है.बिहार में चुनाव का माहौल है तो ऐसे में फिर से धनबल और बाहुबल का जोर है.तमाम दलों के नेता टिकट पाने की जोर आजमाइश में लगे हैंऔर बाहुबली अपने और अपने समर्थकों का वर्चस्व जमाने में.आज इस जिले में दो बाहुबलियों के बीच का सियासी टकराव चर्चा का केंद्र बिंदु बना रहता है.एक तरफ सिवान के ‘साहब’ के नाम से मशहूर मो.शहाबुद्दीन का जलवा है तो दूसरी ओर अजय सिंह का रुतबा जिनकी धर्म पत्नी कविता सिंह ने शहाबुद्दीन की पत्नी हिना शहाब को लोकसभा चुनाव में मात दी थी और अब सिवान की सांसद हैं।
1980 के दशक में बदलने लगी सिवान की आबोहवा:
1980 के दशक तक सिवान की सियासत में अपराधिक तत्वों का बोलबाला निम्न था.1980 के दशक में कई अपराधों में नाम आने के बाद शहाबुद्दीन ने सियासत में एंट्री की और अपनी लोकप्रियता के दम पर दो बार विधायक और 4 बार सांसद रहे.एक दौर था जब तेजाब कांड हो, चंद्रशेखर हत्या कांड हो या सिवान में कोई भी अपराध लेकिन शहाबुद्दीन का नाम हमेशा सुर्खियों में रहता था.पर कई घटनाओं में उनके नाम आने के बाद भी वे अपने आप मे निर्दोष साबित करते चले गए।फिर भी उनके बिरुद्ध हावी खेमे के लोग अपनी तमाम कसरते नही छोड़ी।फिर हुआ यूं कि जिले के चर्चित कांडों में शहाबुद्दीन घिरते चले गए।
जेल में बंद हैं शहाबुद्दीन लेकिन सियासी रुतबा कम नहीं क्यों ?
शहाबुद्दीन की गिनती आरजेडी प्रमुख लालू यादव के करीबियों में होती है. लेकिन वक्त बदला और शहाबुद्दीन को तेजाब कांड में उम्रकैद की सजा हो गई, चुनाव लड़ने पर रोक लग गई.पत्नी हीना शहाब को पहले ओम प्रकाश यादव और बाद में कविता सिंह ने चुनावी मुकाबले में मात दी.हालांकि जेल से भी शहाबुद्दीन का सियासी रुतबा कम नहीं हुआ है.पत्नी हीना शहाब आरजेडी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में हैं और बेटा ओसामा शहाब छात्र राजनीति में.रुतबा पर प्रकाश डालें तो उनका रुतबा आज भी जिले में कायम है।सिवान ऑनलाइन न्यूज के पड़ताल के दौरान यह बातें सामने उभर कर आई कि उनका रुतबा भयावह कांड के सुर्खियों में आने के बाद नही बल्कि उनके विकास के नाम पर है।आज प्राइवेट हॉस्पिटल या सदर अस्पताल की हालात को देख लोगों के दिलों में बेचैनी हो उठती है।उस समय जरूर लोग शहाबुद्दीन की प्रशंसा करने से बाज नही आते है।भले ही कोर्ट उन्हें दोषी करार दिया है लेकिन अब तक लोकप्रियता में शहाबुद्दीन पीछे नही है।सिवान के सदर अस्पताल अवस्तिथ कई खड़ी इमारते देखकर लोग एक बार उनकी चर्चा जरूर कर लेते है।
हमेशा से ऐसी नहीं थी सिवान की सियासत:
ऐसा नहीं था कि सिवान की सियासत में हमेशा से बाहुबल का जोर हावी था. इस सीट से अब्दुल गर्फूर,जर्नादन तिवारी और वृषिण पटेल जैसे नेता जीतकर संसद पहुंचे हैं लेकिन 1980 के दशक में शहाबुद्दीन की सियासत में एंट्री के साथ ही यहां की आबोहवा बदलने लगी. दो दशक तक तो कोई और नेता यहां उभर ही नहीं पाया. बीच में माओवाद की बढ़ती समस्या और उससे लड़ने के शहाबुद्दीन के नारे ने लोगों के बीच हालांकि लोकप्रियता भी दिलाई. लेकिन इस दौरान काफी खून खराबा हुआ.
दूसरे बाहुबली के उभार से शहाबुद्दीन का प्रभाव हुआ कम:
शहाबुद्दीन के साम्राज्य को चुनौती मिली एक और अजय सिंह से.अजय सिंह की छवि इलाके में समझ से परे नही है और हत्या-अपहरण समेत करीब तीस संगीन मामलों में आरोप है. अपनी मां और तब की विधायक जगमातो देवी की निधन के बाद जुलाई 2011 में अजय ने जदयू से टिकट मांगे थे. लेकिन अपराधिक छवि को ध्यान में रख कर जेडीयू ने टिकट नहीं दिया था.इसके बाद अजय सिंह ने आनन – फानन में पितृ पक्ष में शादी की और पत्नी को टिकट दिलाकर विधायक का चुनाव जीतवाने में सफल रहे.अजय सिंह की पत्नी कविता सिंह 2011और 2015 में दारौंदा सीट से विधायक चुनी गई.जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव में शहाबुद्दीन की पत्नी हीना शहाब को हराकर सांसद बनीं.
बिहार में इस बार फिर चुनाव है और सिवान जिले पर बर्चस्व के लिए दोनों ओर से जोर आजमाइश की पूरी आशंका है.सभी दलों की अपनी रणनीति है और सबका अपना गुणागणित.देखना होगा कि सिवान की 8 विधान सभा सीटों पर वोटर किसके पक्ष में अपना फैसला देता है ?
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